जलवायु परिवर्तन के कारण भारत के कई हिस्सों में बाढ़ और सूखे जैसी चरम मौसमी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। एक ताजा अध्ययन से पता चला है कि देश के 51 जिले गंभीर बाढ़ के खतरे में हैं, जबकि 91 जिलों पर सूखे का भारी संकट मंडरा रहा है। इसके अलावा, 118 जिलों में बाढ़ का और 188 जिलों में सूखे का बड़ा खतरा है। यह अध्ययन गुवाहाटी और मंडी स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) और सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी (सीएसटीईपी) ने मिलकर किया है।
बाढ़ और सूखे से प्रभावित जिलों का हाल
अध्ययन में खुलासा हुआ कि कुछ जिलों को बाढ़ और सूखे दोनों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे 11 जिलों में बिहार का पटना, असम के डिब्रूगढ़ और चराईदेव, केरल का अलपुझा, ओडिशा का केंद्रपाड़ा और पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद व नादिया जैसे जिले शामिल हैं। इन जिलों को एक साथ दोनों खतरों के प्रति अधिक संवेदनशील बताया गया है।
खतरों का क्षेत्रीय विश्लेषण
अध्ययन ने देश के विभिन्न जिलों में जलवायु से जुड़े खतरों का विश्लेषण किया। बाढ़ का खतरा ज्यादातर उन इलाकों में है जहां नदी तंत्र मौजूद है या जहां भारी बारिश होती है। दूसरी ओर, सूखे का संकट व्यापक है और लगभग सभी राज्यों को किसी न किसी रूप में प्रभावित कर रहा है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, और पंजाब जैसे राज्यों में सूखे का असर अधिक दिखता है।
बाढ़ और सूखे के कारण बढ़ती चुनौतियां
बाढ़ और सूखे से प्रभावित क्षेत्रों में किसानों और स्थानीय निवासियों को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। बाढ़ से फसलें बर्बाद हो जाती हैं, घर-परिवार उजड़ जाते हैं और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचता है। वहीं, सूखे की स्थिति में पानी की कमी, फसलों का उत्पादन घटने और ग्रामीण रोजगार संकट जैसी चुनौतियां सामने आती हैं।
प्रभावित क्षेत्रों में असमान स्थिति
अध्ययन में यह भी बताया गया कि इन खतरों का असर हर जिले में एक जैसा नहीं है। उदाहरण के तौर पर, असम के माजुली जिले में बाढ़ का खतरा ज्यादा है, लेकिन वहां की जनसंख्या कम होने के कारण नुकसान का स्तर सीमित हो सकता है। इसके विपरीत, पटना जैसे घनी आबादी वाले जिले में बाढ़ का खतरा भले ही कम हो, लेकिन जनसंख्या और बुनियादी ढांचे की कमजोर स्थिति इसे अधिक असुरक्षित बनाती है।
समस्याओं का समाधान और सिफारिशें
रिपोर्ट ने इन समस्याओं का समाधान भी सुझाया है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जल निकासी तंत्र को मजबूत करने और सूखा प्रभावित जिलों में जल संचयन की तकनीकों को अपनाने की जरूरत बताई गई है। कृषि क्षेत्र में जैविक खेती, सूखा प्रतिरोधी फसलों और सिंचाई की आधुनिक तकनीकों को बढ़ावा देने की सिफारिश की गई है।
सरकार और समुदाय की भूमिका
अध्ययन में यह भी कहा गया कि सरकार को प्रभावित जिलों में फसल बीमा और रोजगार योजनाओं का व्यापक रूप से क्रियान्वयन करना चाहिए। इसके साथ ही स्थानीय स्तर पर जागरूकता अभियान चलाकर जलवायु संकट से निपटने के उपायों को प्रोत्साहन देना होगा।
जलवायु परिवर्तन का बढ़ता खतरा
भारत में बाढ़ और सूखे के खतरे के पीछे जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ी वजह बनकर उभरा है। यदि समय रहते इन समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो यह न केवल पर्यावरणीय असंतुलन को बढ़ाएगा, बल्कि देश की आर्थिक और सामाजिक स्थिरता पर भी गहरा असर डालेगा।
अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में बाढ़ और सूखे की घटनाएं अधिक गंभीर और व्यापक होती जा रही हैं। 51 जिलों में बाढ़ और 91 जिलों में सूखे का गंभीर खतरा यह दर्शाता है कि भारत को अपनी जलवायु रणनीति में बड़े बदलाव करने की आवश्यकता है।
इन खतरों से निपटने के लिए स्थानीय स्तर पर समाधान और सरकारी प्रयासों का प्रभावी कार्यान्वयन बेहद जरूरी है। सिंचाई प्रबंधन, जल संचयन, फसल बीमा, जैविक खेती, और रोजगार योजनाओं को मजबूती से लागू करना चाहिए। साथ ही, जनता को जागरूक बनाकर जलवायु संकट के प्रति तैयार करना आवश्यक है।
यदि समय रहते इन समस्याओं को संबोधित नहीं किया गया, तो इससे कृषि, अर्थव्यवस्था, और सामाजिक स्थिरता पर गहरा असर पड़ेगा। सामूहिक प्रयास और ठोस नीतियां ही इन खतरों से निपटने और भविष्य में अधिक स्थिर और सुरक्षित भारत बनाने का मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं।