राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने हिमालय में ग्लेशियल झीलों के तेज़ी से विस्तार पर चिंता जताते हुए केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव, जीबी पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान के निदेशक और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोटिस जारी किया है। एनजीटी ने इस मामले में बढ़ते तापमान के कारण झीलों की संख्या में हो रही वृद्धि को गंभीर चिंता का विषय बताया है, जो प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ते जोखिम का संकेत है।
ग्लेशियल झीलों की संख्या में बढ़ोतरी: प्राकृतिक आपदाओं का खतरा
एनजीटी ने रिपोर्ट के आधार पर यह नोटिस जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि पिछले 13 वर्षों में ग्लेशियल झीलों की संख्या में लगभग 10.81 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना और इसके परिणामस्वरूप बड़ी ग्लेशियल झीलों का बनना, बाढ़ और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं का कारण बन रहा है। एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल की पीठ ने इस पर गंभीर चिंता व्यक्त की है।
ग्लेशियल झीलों के फटने से बाढ़ का खतरा
एनजीटी ने बताया कि ग्लेशियल झीलों का सतही क्षेत्रफल 2011 से 2024 तक 33.7 प्रतिशत बढ़ चुका है। इस वृद्धि का मुख्य कारण ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना है, जिससे इन झीलों में पानी की मात्रा बढ़ रही है। झीलों के फटने से निचले इलाकों में बाढ़ की संभावना बढ़ गई है, खासकर लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश जैसे क्षेत्रों में।
केंद्र को जवाब दाखिल करने का आदेश
एनजीटी ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और संबंधित अधिकारियों को 10 मार्च से पहले अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। इसके अलावा, न्यायाधिकरण ने यह भी कहा कि यह मामला जैव विविधता अधिनियम, जल अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के उल्लंघन का संकेत देता है, और इस पर त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता है।
एनजीटी द्वारा जारी किए गए नोटिस से यह स्पष्ट होता है कि ग्लेशियल झीलों का बढ़ता विस्तार और इसके कारण उत्पन्न होने वाला प्राकृतिक खतरा, देश के पर्यावरण के लिए गंभीर चुनौती बन चुका है। इन झीलों की संख्या में वृद्धि और उनकी स्थिति पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में होने वाली आपदाओं को रोका जा सके।
हिमालय में ग्लेशियल झीलों की संख्या में तेज़ी से हो रही वृद्धि, विशेष रूप से बढ़ते तापमान और ग्लेशियरों के पिघलने के कारण, एक गंभीर पर्यावरणीय चुनौती बन गई है। इन झीलों के आकार में वृद्धि और उनके पानी के स्तर में बढ़ोतरी से बाढ़ और भूस्खलन जैसे प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है, जो निचले इलाकों में जान-माल की हानि का कारण बन सकते हैं। एनजीटी के द्वारा उठाए गए कदम और केंद्र से जवाब की मांग, इस मुद्दे की गंभीरता को उजागर करते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए त्वरित और ठोस उपायों की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में इन जोखिमों को कम किया जा सके और हमारे प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा की जा सके।