भारत में पिछले कुछ दशकों में पक्षियों की संख्या में निरंतर गिरावट आई है, जो पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक गंभीर चेतावनी है। विशेष रूप से, गिद्धों की संख्या में तेज़ी से कमी और कृषि भूमि, चरागाहों, घास के मैदानों, और रेगिस्तानी क्षेत्रों में पक्षियों की घटती आबादी चिंता का विषय बनी हुई है। हाल ही में प्रकाशित लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट, 2024 में इस संकट की पुष्टि की गई है, जिसमें बताया गया है कि 1992 से 2002 के बीच गिद्धों की तीन प्रमुख प्रजातियों—सफेद दुम वाले, भारतीय, और पतली चोंच वाले गिद्धों की संख्या में भारी गिरावट आई है।
गिद्धों की संकट में डूबती प्रजातियाँ
गिद्ध, जो पारिस्थितिकी तंत्र में कचरे को साफ करने का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं, उनकी संख्या में हुई कमी से जैव विविधता पर गहरा असर पड़ा है। सफेद दुम वाले गिद्ध और भारतीय गिद्ध की आबादी में 98% तक की गिरावट दर्ज की गई है। यह तथ्य न केवल इन प्रजातियों के लिए खतरनाक है, बल्कि यह संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी चिंताजनक है। गिद्धों की कमी का अर्थ है कि मृत जीवों के नष्ट होने की प्रक्रिया धीमी हो रही है, जिससे बीमारियों का फैलाव बढ़ सकता है।
पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव
लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच दशकों में अर्ध-शुष्क क्षेत्रों, घास के मैदानों और रेगिस्तानी पारिस्थितिकी तंत्र में पक्षियों की संख्या में तेजी से कमी आई है। इनमें कृषि भूमि, चरागाह, परती खेत, और बंजर भूमि जैसे इंसानी गतिविधियों से प्रभावित क्षेत्र शामिल हैं। मानव हस्तक्षेप ने इन क्षेत्रों की पारिस्थितिकीय संतुलन को बाधित किया है, जिससे पक्षियों का निवास स्थान कम हुआ है।
प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन
पक्षियों की संख्या में गिरावट के पीछे एक बड़ा कारण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन है। जल, वायु, और मिट्टी का प्रदूषण पक्षियों के स्वास्थ्य और उनकी प्रजनन दर पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। इसके साथ ही, जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे मौसम के असामान्य बदलाव भी पक्षियों की migratory patterns को प्रभावित कर रहे हैं, जिससे उनकी आबादी पर और असर पड़ रहा है।
संरक्षण की आवश्यकता
यह स्थिति एक गंभीर चिंता का विषय है और इससे निपटने के लिए तुरंत कार्रवाई की आवश्यकता है। संरक्षण के उपायों में habitat preservation, अवैध शिकार पर रोकथाम, और प्रदूषण में कमी लाना शामिल है। इसके अलावा, स्थानीय समुदायों को इन प्रयासों में शामिल करना भी महत्वपूर्ण है, ताकि वे पक्षियों के संरक्षण में अपनी भूमिका निभा सकें। सरकार, गैर-सरकारी संगठनों, और समुदायों को मिलकर काम करना होगा ताकि पक्षियों की आबादी में सुधार किया जा सके और पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन फिर से स्थापित किया जा सके।
भारत में पक्षियों की घटती आबादी केवल एक पर्यावरणीय समस्या नहीं है; यह मानवता के लिए एक चेतावनी है। यदि हम इसे नजरअंदाज करते हैं, तो इसका प्रभाव केवल पक्षियों पर ही नहीं, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र और मानव जीवन पर पड़ेगा। इस स्थिति को गंभीरता से लेते हुए ठोस कदम उठाना अनिवार्य है ताकि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और संतुलित पर्यावरण सुनिश्चित कर सकें।