डॉल्फिन संरक्षण के लिए बड़ा कदम: 8000 किलोमीटर में हुआ सर्वे, जल्द होगा वास्तविक आकलन

saurabh pandey
5 Min Read

भारत में विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी गंगा और सिंधु नदी की डॉल्फिन की वास्तविक संख्या का पता लगाने के लिए अब तक का सबसे बड़ा सर्वे पूरा हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 15 अगस्त 2020 को लॉन्च किए गए ‘प्रोजेक्ट डॉल्फिन’ के तहत यह सर्वेक्षण किया गया, जिसमें लगभग 8000 किलोमीटर के नदी क्षेत्र में डॉल्फिन की गिनती की गई। इस सर्वे के परिणाम से न केवल गंगा और सिंधु डॉल्फिन की स्थिति का वैज्ञानिक आकलन मिलेगा, बल्कि इनके संरक्षण के लिए एक ठोस रोडमैप तैयार किया जाएगा।

डॉल्फिन: स्वस्थ नदी पारिस्थितिकी तंत्र का प्रतीक

नदी डॉल्फिन किसी भी नदी की पारिस्थितिकी तंत्र की सेहत का सूचक होती हैं। लेकिन अवैध शिकार, प्रदूषण और नदी प्रवाह में कमी के कारण इनकी संख्या में भारी गिरावट आई है। 2009 में गंगा डॉल्फिन को भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया गया था और यह असम राज्य का राजकीय जलीय जीव भी है। इसके बावजूद, इनके संरक्षण के लिए चुनौतियाँ लगातार बढ़ती जा रही हैं।

सर्वेक्षण में शामिल राज्य और एजेंसियाँ

डॉल्फिन के इस सर्वेक्षण को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय, भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII), और राज्यों के वन विभागों ने मिलकर पूरा किया। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, मध्य प्रदेश, पंजाब और राजस्थान के वन विभागों ने इस कार्य में सहयोग दिया।

विलुप्ति की ओर बढ़ती डॉल्फिन की प्रजातियाँ

सर्वे से पहले तैयार ‘मॉनिटरिंग गंगेस एंड इंडस रिवर डॉल्फिन्स’ गाइड में बताया गया है कि भारत की गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों में डॉल्फिन की संख्या पिछले सौ सालों में 50-60% तक घट गई है। प्रदूषण, अवैध शिकार, और नदियों में पानी की कमी के कारण यमुना, केन, बेतवा और बराक जैसी नदियों में ये प्रजातियाँ लगभग विलुप्त हो चुकी हैं। वर्तमान में गंगा बेसिन में 2644 और ब्रह्मपुत्र बेसिन में 987 डॉल्फिन शेष हैं, जबकि सिंधु डॉल्फिन की भारत में आबादी मात्र 6-8 है, जो पंजाब की ब्यास नदी में पाई जाती हैं।

डॉल्फिन संरक्षण के अंतर्राष्ट्रीय प्रयास

भारत में डॉल्फिन को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची I में शामिल किया गया है। इसके अलावा, ये CITES (अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संधि) के परिशिष्ट I में भी सूचीबद्ध हैं, जिससे इनका संरक्षण प्राथमिकता पर है। सिंधु डॉल्फिन को IUCN की रेड लिस्ट में ‘लुप्तप्राय’ के रूप में दर्ज किया गया है, क्योंकि बांधों और जल प्रवाह में रुकावटों के कारण इनका आवास बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

प्रोजेक्ट डॉल्फिन: सतत निगरानी की आवश्यकता

डॉल्फिन की प्रजनन दर बहुत धीमी होती है, क्योंकि एक मादा डॉल्फिन हर 2-3 साल में केवल एक बच्चे को जन्म देती है। इसलिए, इनकी आबादी को बनाए रखने के लिए नियमित निगरानी और संरक्षण जरूरी है। प्रोजेक्ट डॉल्फिन का उद्देश्य न केवल इन प्रजातियों को विलुप्ति से बचाना है, बल्कि इनके हॉटस्पॉट्स पर पूरे वर्ष निगरानी भी सुनिश्चित करना है।

डॉल्फिन संरक्षण के लिए किए गए इस सर्वेक्षण से भारत में डॉल्फिन की सही स्थिति का पता चलेगा, जिससे इनके लिए प्रभावी नीति और संरक्षण योजनाएँ तैयार की जा सकेंगी। डॉल्फिन जैसी प्रजातियाँ न केवल हमारे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए आवश्यक हैं, बल्कि यह भी सुनिश्चित करती हैं कि हमारी नदियाँ स्वच्छ और स्वस्थ बनी रहें।

डॉल्फिन संरक्षण के लिए किया गया यह सर्वेक्षण न केवल भारत में डॉल्फिन की वास्तविक स्थिति को उजागर करेगा बल्कि इनके संरक्षण के लिए ठोस रणनीति भी निर्धारित करेगा। डॉल्फिन, विशेष रूप से गंगा और सिंधु डॉल्फिन, नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र की सेहत का प्रतीक हैं। परंतु प्रदूषण, अवैध शिकार, और जल प्रवाह में कमी जैसी समस्याओं ने इन्हें विलुप्ति के कगार पर ला दिया है।

प्रोजेक्ट डॉल्फिन के तहत इस सर्वे से सरकार और पर्यावरणविदों को इन प्रजातियों के संरक्षण के लिए एक व्यापक रोडमैप तैयार करने में मदद मिलेगी। चूंकि डॉल्फिन की प्रजनन दर बेहद धीमी है, इसलिए इनकी सतत निगरानी और प्रभावी संरक्षण बेहद जरूरी है। इस परियोजना की सफलता तभी संभव होगी जब राज्य और केंद्र सरकारें मिलकर काम करें और स्थानीय समुदायों को भी इन प्रयासों में शामिल किया जाए, ताकि इन जलीय जीवों का भविष्य सुरक्षित और उज्ज्वल रह सके।

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *