हनुमानगढ़ जिले के टिब्बी तहसील क्षेत्र में इथेनॉल फैक्ट्री के विरोध में किसान तीन महीनों से प्रदर्शन कर रहे हैं। राठीखेड़ा गांव में लगने वाली इस फैक्ट्री को लेकर किसानों की चिंताएँ बढ़ती जा रही हैं। किसान इस बात को लेकर चिंतित हैं कि इस फैक्ट्री से उनका कृषि क्षेत्र प्रभावित होगा, जिससे उनकी फसलें और स्वास्थ्य दोनों पर खतरा आ सकता है।
इथेनॉल कारखाने का विस्तार
चंडीगढ़ की ड्यून इथेनॉल प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने 450 करोड़ रुपये की लागत से राठीखेड़ा गांव में 1320 केएलपीडी क्षमता का इथेनॉल कारखाना स्थापित करने का प्रस्ताव रखा है। इसके लिए कंपनी ने लगभग 45 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया है। इसके अलावा, कारखाने की बिजली की आवश्यकता को पूरा करने के लिए कंपनी 24.5 मेगावाट क्षमता का पॉवर प्लांट भी स्थापित करने जा रही है।
किसान की चिंताएँ
किसानों का कहना है कि इथेनॉल उत्पादन के लिए आवश्यक पानी और रासायनिक अपशिष्ट का भूजल पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। किसान मदन दुर्गेसर का कहना है, “हमारा क्षेत्र पूर्णतः भूजल पर निर्भर है। इथेनॉल उत्पादन के बाद जो दूषित पानी बचता है, वह भूगर्भ में डाल दिया जाएगा, जिससे हमारे जल स्रोतों का जल स्तर और गुणवत्ता प्रभावित होगी।”
किसान महंगा सिंह सिद्धू ने भी अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “इथेनॉल बनाने के लिए लाखों लीटर पानी की आवश्यकता होगी, जिससे भूजल संकट उत्पन्न होगा।”
किसान विनोद नेहरा ने भी इस बात पर सवाल उठाया कि जब किसानों को असिंचित भूमि के लिए सिंचाई की अनुमति नहीं दी जा रही, तो फिर इस कारखाने के लिए भारी मात्रा में पानी की अनुमति क्यों दी गई है।
सरकार का पक्ष
कंपनी के सीनियर जनरल मैनेजर जयप्रकाश शर्मा का कहना है कि इथेनॉल उत्पादन में होने वाले अपशिष्ट का सही प्रबंधन किया जाएगा। उन्होंने बताया, “हमारे संयंत्र में जो पानी बचेगा, उसे हम हाई-क्वालिटी आरओ के जरिए पुनः साफ करेंगे। हम किसी भी स्थिति में पानी को भूगर्भ में नहीं डालेंगे।”
कृषि का भविष्य
किसान दुर्गेसर ने कहा, “अगर इस कारखाने से वास्तविकता में फायदा होता तो हमें कोई आपत्ति नहीं होती। लेकिन हमारी खेती और पानी का संकट हमारी प्राथमिकता है।”
किसान आंदोलन की स्थिति
किसान पिछले तीन महीनों से आंदोलन कर रहे हैं। उन्होंने 12 अगस्त को टिब्बी में उपखंड कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया और धरना दिया। किसानों का कहना है कि जब तक उनकी चिंताओं का समाधान नहीं किया जाता, वे अपने आंदोलन को जारी रखेंगे।
हालांकि, प्रशासन किसानों को मनाने के प्रयास कर रहा है, लेकिन किसानों के खिलाफ मुकदमे भी दर्ज किए जा रहे हैं। महंगा सिंह सिद्धू का कहना है कि ये मुकदमे किसानों पर दबाव बनाने के लिए किए जा रहे हैं।
इथेनॉल कारखाने के प्रस्ताव को लेकर किसान और प्रशासन के बीच विवाद बढ़ता जा रहा है। जहां एक ओर प्रशासन इस परियोजना को विकास का एक मील का पत्थर मानता है, वहीं दूसरी ओर किसान अपने कृषि और जल स्रोतों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। यह देखना होगा कि प्रशासन इस मुद्दे को कैसे सुलझाता है और किसानों की चिंताओं को कितनी गंभीरता से लेता है।