दुनिया भर में 40 प्रतिशत फसल भूमि और चारागाह खतरे में: शोधकर्ताओं ने तापमान और ग्रीनहाउस गैसों को बताया मुख्य कारण

saurabh pandey
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हाल ही में एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि बढ़ते तापमान और ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती मात्रा के कारण दुनिया भर में लगभग 40 प्रतिशत फसल भूमि और चारागाह संकट में हैं। यह समस्या तेजी से बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण, और कृषि गतिविधियों के बढ़ते दबाव के कारण और गंभीर हो गई है।

भूमि का अत्यधिक उपयोग और उसके परिणाम

वैज्ञानिकों ने पाया है कि खेती के लिए चारागाहों का उपयोग करने, अत्यधिक चराई, और जलवायु परिवर्तन के चलते भूमि उपयोग में हुए परिवर्तनों ने खाद्य उत्पादन को गंभीर खतरे में डाल दिया है। खासकर, अफ्रीका, एशिया और दक्षिण अमेरिका के विकासशील देशों में यह स्थिति अत्यधिक चिंताजनक है, जहां जनसंख्या वृद्धि और भोजन की मांग में तेजी आ रही है।

अध्ययन के अनुसार, 2050 तक वैश्विक खाद्य मांग में लगभग 110 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है। इसके चलते चारागाहों और फसल भूमि की क्षति को रोकना अनिवार्य हो गया है।

संवेदनशीलता की स्थिति

शोधकर्ताओं का कहना है कि वर्तमान में दुनिया की कुल भूमि का लगभग 54 प्रतिशत हिस्सा चारागाह के रूप में उपयोग में है, और इनमें से करीब 50 प्रतिशत भूमि पहले ही क्षतिग्रस्त हो चुकी है। यह स्थिति न केवल खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि यह वैश्विक जलवायु संतुलन को भी प्रभावित कर रही है।

अध्ययन में यह भी बताया गया है कि 95 प्रतिशत कृषि भूमि वर्षा पर निर्भर है, और जलवायु परिवर्तन के कारण अब वर्षा की मात्रा में अत्यधिक उतार-चढ़ाव आ रहा है। इससे फसलों की उपज प्रभावित हो रही है, जो कृषि के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है।

शहरीकरण का बढ़ता प्रभाव

दुनिया के कई हिस्सों में तेजी से शहरीकरण हो रहा है, जिससे कृषि भूमि और घास के मैदानों का क्षेत्रफल कम हो रहा है। 1950 के बाद से, शहरों की जनसंख्या में 10 गुना वृद्धि हुई है, और 2010 के बाद से विश्व जनसंख्या में 50 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2030 तक 10 में से 6 लोग शहरी क्षेत्रों में रहेंगे, और 2050 तक यह अनुपात बढ़कर 7 होगा।

भविष्य की चुनौतियां

अगर इस संकट से निपटने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो यह स्थिति भविष्य में और गंभीर हो सकती है। इससे न केवल खाद्य सुरक्षा को खतरा है, बल्कि जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों की कमी भी बढ़ सकती है।

समाधान के रास्ते

विशेषज्ञों का मानना है कि हमें कृषि तकनीकों में सुधार करने, स्थायी विकास की नीतियों को अपनाने, और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर जोर देने की आवश्यकता है। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सरकारी नीतियों में बदलाव आवश्यक हैं।

इस अध्ययन ने हमें एक गंभीर चेतावनी दी है कि हमें जलवायु परिवर्तन और भूमि के अत्यधिक उपयोग की समस्या को हल करने के लिए तुरंत कार्रवाई करने की आवश्यकता है। यदि हम आज नहीं जागेंगे, तो भविष्य की पीढ़ियों को गंभीर खाद्य संकट का सामना करना पड़ सकता है।

बढ़ते तापमान, ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती मात्रा, और भूमि के अत्यधिक उपयोग ने वैश्विक खाद्य सुरक्षा को गंभीर खतरे में डाल दिया है। यदि हम तत्काल उपाय नहीं करते हैं, तो 2050 तक खाद्य मांग में अनुमानित वृद्धि के कारण खाद्य संकट और भी गहरा हो सकता है।

इस स्थिति को सुधारने के लिए आवश्यक है कि हम कृषि नीतियों को सुधारें, शहरीकरण को नियंत्रित करें, और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करें। यह समय है कि वैश्विक समुदाय एक साथ आकर स्थायी विकास के लिए ठोस कदम उठाए, ताकि हम न केवल अपनी खाद्य आवश्यकताओं को पूरा कर सकें, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को भी कम कर सकें।

आखिरकार, यह सभी की जिम्मेदारी है कि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्थायी पर्यावरण सुनिश्चित करें। हमारे प्रयास ही यह तय करेंगे कि क्या हम इस संकट से उबर पाएंगे या भविष्य में और अधिक गंभीर समस्याओं का सामना करेंगे।

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