एनसीआर में ओजोन प्रदूषण: समस्या और समाधान

saurabh pandey
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राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में प्रदूषण का स्तर हमेशा चिंता का विषय रहा है, लेकिन इस बार ओजोन प्रदूषण ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। वैज्ञानिक एवं पर्यावरण केंद्र (सीएसई) की हालिया रिपोर्ट में एनसीआर के कुछ ऐसे इलाके सामने आए हैं, जो ओजोन प्रदूषण से बुरी तरह प्रभावित हैं। रिपोर्ट में 1 अप्रैल 2024 से 18 जुलाई 2024 तक के आंकड़ों के आधार पर सबसे ज्यादा प्रदूषित और कम प्रदूषित क्षेत्रों की पहचान की गई है, जो इस मुद्दे को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

ओजोन प्रदूषण: कैसे बनता है और इसके स्रोत

ओजोन, एक गैस है, जो नाइट्रोजन ऑक्साइड और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (वीओसी) के बीच रासायनिक प्रतिक्रिया से उत्पन्न होती है। यह प्रक्रिया तब सक्रिय होती है जब वातावरण में तेज धूप होती है। नाइट्रोजन ऑक्साइड और वीओसी का मुख्य स्रोत वाहनों से निकलने वाला धुआं, कारखानों से निकलने वाले उत्सर्जन और कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र होते हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि सतह पर मौजूद ओजोन का कोई सीधा स्रोत नहीं होता, बल्कि यह प्रदूषण अन्य रासायनिक तत्वों के साथ मिलकर बनता है।

एनसीआर में सबसे ज्यादा प्रभावित इलाके

सीएसई की रिपोर्ट में कई इलाके ऐसे मिले, जहां ओजोन का स्तर बार-बार मानक से ऊपर रहा। कर्णी सिंह शूटिंग रेंज और नरेला जैसे इलाके अपेक्षाकृत कम आबादी वाले और हरे-भरे हैं, लेकिन यहाँ ओजोन प्रदूषण 78 दिनों तक लगातार बना रहा। इसके अलावा, नॉलेज पार्क, ग्रेटर नोएडा, बवाना, और जेएलएन स्टेडियम जैसे स्थानों पर भी स्थिति खराब रही। इन क्षेत्रों में उच्च ओजोन स्तर एक बड़ी चिंता का विषय है, खासकर तब जब इन्हें हरित क्षेत्र माना जाता है।

हालांकि, रिपोर्ट में कुछ इलाके भी ऐसे हैं, जहां ओजोन का स्तर एक दिन भी मानक से ऊपर नहीं गया। आयानगर, चांदनी चौक, आईजीआई एयरपोर्ट, और पूसा जैसे भीड़भाड़ वाले इलाके इनमें शामिल हैं। यह देखकर हैरानी होती है कि जहां कम आबादी वाले क्षेत्रों में प्रदूषण अधिक है, वहीं घनी आबादी वाले क्षेत्रों में ओजोन स्तर अपेक्षाकृत कम पाया गया।

ओजोन प्रदूषण का स्वास्थ्य पर प्रभाव

जमीन की सतह पर मौजूद ओजोन एक बेहद प्रतिक्रियाशील गैस होती है, जो स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकती है। सीएसई की कार्यकारी निदेशक, अनुमिता रायचौधरी, ने इस पर चिंता व्यक्त की है कि ओजोन प्रदूषण श्वसन नली में सूजन पैदा कर सकता है और फेफड़ों को संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है। यह खासकर अस्थमा के मरीजों, बच्चों, बुजुर्गों और पहले से श्वसन संबंधी समस्याओं से ग्रस्त लोगों के लिए खतरनाक है। इस गैस के संपर्क में आने से फेफड़ों की कार्यक्षमता कम हो सकती है और दीर्घकालिक श्वसन समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है।

ओजोन प्रदूषण नियंत्रण की जरूरत

ओजोन प्रदूषण के खतरे को कम करने के लिए जरूरी है कि इसके स्रोतों पर नियंत्रण किया जाए। वाहनों और औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले धुएं पर लगाम लगाई जाए। सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल को बढ़ावा देना, उद्योगों में हरित तकनीक को अपनाना, और कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करना इस दिशा में प्रभावी कदम हो सकते हैं। साथ ही, प्रदूषण की नियमित मॉनिटरिंग और इसके लिए कठोर नियमों का पालन करना भी आवश्यक है।

एनसीआर में ओजोन प्रदूषण के बढ़ते स्तर को लेकर यह स्पष्ट है कि इस समस्या का समाधान करना आसान नहीं है, लेकिन जागरूकता और सही नीतियों के साथ इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

एनसीआर में ओजोन प्रदूषण की समस्या एक बड़ी चुनौती बन चुकी है, खासकर हरे-भरे इलाकों में इसका बढ़ता प्रभाव चिंता का विषय है। यह केवल एक पर्यावरणीय समस्या नहीं है, बल्कि इसके स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ सकते हैं। सरकार और स्थानीय प्रशासन को मिलकर ओजोन प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि एनसीआर के लोग एक स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण में सांस ले सकें।

ओजोन प्रदूषण एनसीआर के लिए एक गंभीर और उभरती हुई समस्या है, जिसका सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ता है। विशेष रूप से हरे-भरे और कम आबादी वाले इलाकों में इसका उच्च स्तर चिंता का कारण है। इसे नियंत्रित करने के लिए वाहनों और उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषकों पर सख्त निगरानी, सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहन, और हरित ऊर्जा स्रोतों का अधिकाधिक उपयोग जरूरी है। जागरूकता बढ़ाकर और ठोस नीतियों के साथ ही इस प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे लोगों को स्वच्छ वायु में सांस लेने का अधिकार मिल सके।

Source- dainik jagran

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