दिल्ली में ठोस कचरा संकट: 11,000 टन रोजाना, स्वास्थ्य आपातकाल की आशंका

saurabh pandey
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दिल्ली में हर दिन 11,000 मीट्रिक टन से अधिक ठोस कचरा उत्पन्न हो रहा है, लेकिन इसे प्रोसेस करने की क्षमता केवल 8,073 मीट्रिक टन है। यह असमानता राजधानी की स्वास्थ्य स्थिति को गंभीर संकट में डाल सकती है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से तुरंत कदम उठाने का आदेश दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पर्यावरण मंत्रालय से एक रिपोर्ट मांगी है जिसमें ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के पालन की स्थिति और दिल्ली में उत्पन्न कचरे की प्रोसेसिंग की वर्तमान क्षमता का विवरण शामिल हो। अदालत का कहना है कि अगर समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो दिल्ली में एक स्वास्थ्य आपातकाल उत्पन्न हो सकता है।

कचरा संकट की गंभीरता

दिल्ली में हर दिन उत्पन्न हो रहे 11,000 मीट्रिक टन ठोस कचरे में से लगभग 3,000 मीट्रिक टन कचरा बिना प्रोसेसिंग के सीधे डंप हो रहा है। यह स्थिति स्वास्थ्य, पर्यावरण और शहर के स्वच्छता पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है। एमिकस क्यूरी अपराजिता सिंह ने अदालत को बताया कि एमसीडी की कचरा प्रोसेसिंग क्षमता की कमी के कारण स्थिति और भी विकराल हो सकती है।

गुरुग्राम, फरीदाबाद और ग्रेटर नोएडा की स्थिति

दिल्ली के अलावा, गुरुग्राम, फरीदाबाद और ग्रेटर नोएडा में भी कचरा प्रबंधन की स्थिति चिंताजनक है। गुरुग्राम में रोजाना 1,200 मीट्रिक टन कचरा उत्पन्न होता है, जबकि कचरा प्रोसेसिंग क्षमता मात्र 254 मीट्रिक टन है। फरीदाबाद में 1,000 मीट्रिक टन कचरे की प्रोसेसिंग क्षमता 410 मीट्रिक टन है। ग्रेटर नोएडा में स्थिति थोड़ी बेहतर है, लेकिन समस्याएं बनी हुई हैं।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वह दिल्ली, गुरुग्राम, फरीदाबाद और ग्रेटर नोएडा के कचरा प्रबंधन के मुद्दे पर एक महीने के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करे। इसके साथ ही, अदालत ने दिल्ली सरकार से कहा है कि वह कचरा प्रबंधन योजनाओं की समीक्षा करे और स्वच्छ भारत मिशन के तहत अतिरिक्त धन खर्च करने की अनुमति के प्रस्ताव पर जल्द निर्णय ले।

समाधान की दिशा

सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के तहत, दिल्ली सरकार और संबंधित नगर निगमों के अधिकारियों के बीच जल्द से जल्द बैठकें आयोजित की जाएंगी। उद्देश्य यह है कि एक प्रभावी समाधान निकाला जा सके जो न केवल कचरा प्रबंधन को बेहतर बनाए, बल्कि स्वास्थ्य आपातकाल को भी टाले।

इस संकट से निपटने के लिए सभी स्तरों पर सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। इस दिशा में उठाए गए कदम दिल्ली और इसके पड़ोसी क्षेत्रों के पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे।

दिल्ली में ठोस कचरे की बढ़ती समस्या और उसकी प्रोसेसिंग क्षमता में असंतुलन एक गंभीर स्वास्थ्य संकट का संकेत है। हर दिन 11,000 मीट्रिक टन कचरा उत्पन्न होने के बावजूद, केवल 8,073 मीट्रिक टन कचरे को ही प्रोसेस किया जा रहा है, जिससे लगभग 3,000 मीट्रिक टन कचरा बिना ट्रीटमेंट के ही जमा हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस स्थिति को लेकर गंभीर चिंता जताई है और तुरंत कार्रवाई की मांग की है।

गुरुग्राम, फरीदाबाद और ग्रेटर नोएडा में भी कचरा प्रबंधन की स्थिति समान रूप से चिंताजनक है। इस संदर्भ में, अदालत ने सभी संबंधित अधिकारियों को तत्काल बैठक बुलाने और समस्या के समाधान के लिए प्रभावी योजनाओं को लागू करने का निर्देश दिया है।

समस्या के समाधान के लिए जरूरी है कि सभी स्तरों पर मिलकर काम किया जाए—दिल्ली सरकार, नगर निगम, और केंद्र सरकार को मिलकर एक ठोस और प्रभावी योजना बनानी होगी। यह न केवल कचरा प्रबंधन को बेहतर बनाएगा, बल्कि जनता के स्वास्थ्य और पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी मददगार होगा। अदालत के आदेश और संज्ञान से यह स्पष्ट होता है कि कचरा प्रबंधन के मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है, और इसे एक स्थायी समाधान की ओर बढ़ने की दिशा में कदम उठाने की जरूरत है।

Source – down to earth  

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