असम के प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण हलफनामे में खुलासा किया है कि राज्य के चारदुआर रिजर्व फॉरेस्ट और सोनाई रूपाई वन्यजीव अभयारण्य जैसे संरक्षित क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हो रहा है। यह स्थिति वन संरक्षण और जैव विविधता के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन चुकी है।
अतिक्रमण की गंभीरता
हालिया रिपोर्ट के अनुसार, असम के जंगलों में कुल 73,524.86 हेक्टेयर में से लगभग 50,241 हेक्टेयर वन भूमि पर अवैध कब्जा किया गया है। यह अतिक्रमण मुख्य रूप से निचले क्षेत्रों में स्थित सदाबहार और अर्ध-सदाबहार वन क्षेत्रों में किया गया है। अतिक्रमणकर्ताओं ने इन क्षेत्रों को साफ कर स्थायी आवास बना लिया है और यहां पेड़ काटकर कृषि फसलों की खेती शुरू कर दी है। इसमें सुपारी, नारियल, रबर और चाय जैसी व्यावसायिक फसलों का उगाना शामिल है।
वन अधिकार अधिनियम 2006 के दावे
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि चारदुआर रिजर्व फॉरेस्ट, बालीपारा रिजर्व फॉरेस्ट और सोनाई रूपाई वन्यजीव अभयारण्य में वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत करीब 23,028 दावे दायर किए गए हैं। इस संदर्भ में एक चार्ट भी प्रस्तुत किया गया है, जो दर्शाता है कि आरक्षित और संरक्षित क्षेत्रों में कितनी बड़ी मात्रा में वन भूमि पर अवैध कब्जा किया गया है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की कार्रवाई
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस गंभीर स्थिति पर संज्ञान लेते हुए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से हलफनामे के माध्यम से स्थिति स्पष्ट करने को कहा है। एनजीटी की पूर्वी बेंच ने असम के मुख्य सचिव को चार सप्ताह के भीतर नया हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है, क्योंकि पिछले हलफनामे में कई त्रुटियां पाई गई हैं। एनजीटी ने असम के प्रधान मुख्य वन संरक्षक द्वारा 15 जुलाई 2024 को दायर रिपोर्ट को भी ध्यान में रखने की सलाह दी है।
अतिक्रमण का प्रभाव
अतिक्रमण की इस स्थिति ने स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र और वन्यजीवों के लिए गंभीर खतरा पैदा कर दिया है। जंगलों की कटाई और कृषि कार्यों से जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, और वन क्षेत्र के घटते आकार से वन्य जीवों के आवासों का भी नुकसान हो रहा है। इसके अलावा, इस समस्या ने स्थानीय निवासियों और वन संरक्षण कार्यकर्ताओं के लिए भी चिंता बढ़ा दी है।
सामान्य जनता की भूमिका
इस समस्या को सुलझाने के लिए केवल सरकारी पहल ही पर्याप्त नहीं होगी। आम जनता को भी इस मुद्दे की गंभीरता को समझना होगा और वन संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभानी होगी। स्थानीय समुदायों को जागरूक करने और वन क्षेत्रों के संरक्षण में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए कार्यक्रम चलाने की आवश्यकता है।
चारदुआर रिजर्व फॉरेस्ट और सोनाई रूपाई वन्यजीव अभयारण्य में हो रहे अतिक्रमण की समस्या को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। एनजीटी और अन्य संबंधित संस्थानों द्वारा उठाए गए कदम इस दिशा में महत्वपूर्ण हो सकते हैं। वन संरक्षण और जैव विविधता के लिहाज से यह समय है कि ठोस और प्रभावी उपाय किए जाएं ताकि इन महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा की जा सके और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को स्थिर रखा जा सके।
Source- down to earth