हरियाणा ने एक अनोखी पहल की है जिसके तहत 75 वर्ष से अधिक आयु के वृक्षों को पेंशन देने की योजना शुरू की है। इस योजना का नाम ‘प्राण वायु देवता पेंशन योजना’ है, और इसके तहत कुल 3810 वृक्षों का चयन किया गया है। प्रत्येक वृक्ष को प्रतिवर्ष 2750 रुपये पेंशन दी जाएगी, जो उस व्यक्ति के खाते में भेजी जाएगी जो उस वृक्ष की देखभाल करेगा। इस योजना के तहत पेंशन राशि में प्रतिवर्ष वृद्धि की जाएगी, जैसे कि वृद्धावस्था पेंशन की राशि समय के साथ बढ़ती है।
हरियाणा का यह कदम वृक्षों को केवल ‘आर्थिक वस्तु’ के रूप में नहीं बल्कि ‘जीवित इकाई’ के रूप में मान्यता देने की दिशा में महत्वपूर्ण है। वृक्षों को पेंशन देने का अर्थ उनकी जीवन प्रत्याशा को बढ़ाना है, जिससे उनकी ऑक्सीजन और अन्य पोषक तत्व प्रदान करने की क्षमता में विस्तार होगा। इस पेंशन योजना के तहत पेड़ों की 40 प्रजातियों को शामिल किया गया है, जिनमें मुख्य रूप से पीपल, बरगद, नीम, आम, गूलर और कदंब जैसे पेड़ शामिल हैं।
इस विशिष्ट पेंशन योजना का उद्देश्य पारिस्थितिक महत्व के विशाल पेड़ों का संरक्षण करना है। इससे छोटे भूमिहीन किसानों की आय में वृद्धि हो सकेगी और पुराने पेड़ों की कटाई रोकी जा सकेगी, क्योंकि पेंशन पाने की उम्मीद में पेड़ों के संरक्षण पर जोर दिया जाएगा। संतुलित पर्यावरण स्थापित करने में पेड़-पौधे अहम भूमिका निभाते हैं। एक परिपक्व पेड़ एक साल में वातावरण से लगभग 48 पाउंड कार्बन डाइऑक्साइड हटाता है और अधिक ऑक्सीजन प्रदान करता है।
शोध से पता चलता है कि एक एकड़ पेड़ एक साल में उतनी कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है जितनी एक कार औसतन 2600 मील चलकर पैदा करती है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एक समिति ने एक पेड़ की औसत कीमत 74,500 रुपये आंकी थी, जिसमें ऑक्सीजन पैदा करने की लागत और पारिस्थितिक लाभ शामिल थे।
धरती की खुशहाली के लिए पेड़-पौधों का संरक्षण आवश्यक है। ये वर्षा कराने, तापमान नियंत्रित करने, मिट्टी के कटाव को रोकने और जैव विविधता को बनाए रखने में सहायक हैं। इस तरह की पेंशन योजना के माध्यम से वृक्षों के संरक्षण को बढ़ावा देकर हम सामाजिक और पारिस्थितिकीय दृष्टि से एक मजबूत भविष्य की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।
हरियाणा की ‘प्राण वायु देवता पेंशन योजना’ एक अभिनव पहल है जो वृद्ध वृक्षों को पेंशन देने के माध्यम से उनकी सुरक्षा और संरक्षण को प्रोत्साहित करती है। यह योजना वृक्षों को केवल आर्थिक वस्तु के बजाय एक जीवित इकाई के रूप में मान्यता देती है, जिससे उनकी जीवन प्रत्याशा और पर्यावरणीय महत्व को बढ़ावा मिलता है।
पेड़-पौधों का संरक्षण केवल उनके अस्तित्व की रक्षा करने के लिए नहीं, बल्कि पूरे पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता और संतुलन बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है। इस पहल से न केवल वृक्षों की देखभाल सुनिश्चित होगी, बल्कि छोटे भूमिहीन किसानों की आय में भी वृद्धि होगी और पर्यावरणीय संतुलन में योगदान होगा।
हरियाणा का यह कदम न केवल पारंपरिक सोच को चुनौती देता है, बल्कि समाज और पर्यावरण के बीच एक नई समझ और सामंजस्य स्थापित करता है। इस तरह की पहलों के माध्यम से हम एक स्थायी और हरित भविष्य की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति कर सकते हैं।
Source – दैनिक जागरण