भारत की जलवायु नीति में हालिया बदलाव और आगामी बजट ने हरित और सतत विकास की दिशा में महत्वपूर्ण संकेत दिए हैं। हालांकि, जलवायु परिवर्तन के लगातार बढ़ते प्रभावों को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि इस दिशा में और भी ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।
जलवायु परिवर्तन और इसकी चुनौतियाँ
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करना आज के समय की एक प्रमुख चुनौती बन चुकी है। बढ़ती गर्मी, तूफान, चक्रवात और बाढ़ जैसे प्रभाव देश के जीवन, स्वास्थ्य, रोजगार और अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं। ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) के शोध से पता चलता है कि भारत के 80 प्रतिशत लोग ऐसे जिलों में रहते हैं जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सबसे पहले प्रभावित हो सकते हैं।
हरित और सतत विकास के लिए बजट 2024
बजट 2024 ने हरित और सतत विकास की दिशा में कई महत्वपूर्ण संकेत दिए हैं। सरकार ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए दीर्घकालिक और स्थायी नीतियों को प्राथमिकता देने का वादा किया है। इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं, लेकिन इन उपायों को लागू करने और प्रभावी बनाने के लिए और भी ठोस कार्यवाही की आवश्यकता है।
जलवायु बीमा: एक महत्वपूर्ण पहल
जलवायु बीमा के क्षेत्र में भी सुधार की आवश्यकता है। बाढ़, हीटवेव, जंगल की आग और भूस्खलन जैसी घटनाओं से होने वाले नुकसान को कवर करने के लिए भारत में उपयुक्त बीमा उत्पादों की कमी है। उदाहरण के लिए, नागालैंड ने अत्यधिक वर्षा के लिए पैरामीट्रिक कवर खरीदी है, जो विशिष्ट मानकों पर आधारित होती है। इसी तरह, गुजरात के पाँच जिलों में महिला श्रमिकों को अत्यधिक गर्मी के लिए आय बीमा प्रदान किया गया है। इन मॉडलों को लंबे समय में आर्थिक रूप से व्यवहारिक बनाने के लिए सरकार को बीमा क्षेत्र को प्रोत्साहित और नियामक समर्थन प्रदान करना चाहिए।
जलवायु अनुकूल अवसंरचना
आपदा प्रतिरोधक अवसंरचना के निर्माण के लिए पर्याप्त वित्तीय आवंटन की आवश्यकता है। अंतर-सरकारी संगठन की स्थापना इस दिशा में एक बड़ा कदम है। सरकार को जलवायु प्रतिरोधक अवसंरचना परियोजनाओं के लिए राज्यों को संसाधन उपलब्ध कराने को राष्ट्रीय प्राथमिकता देनी चाहिए। विशेष रूप से जलवायु के प्रति संवेदनशील राज्यों को इस संबंध में अधिक सहायता और संसाधन उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।
कृषि सुरक्षा
जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि क्षेत्र को भी गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसे कार्यक्रमों का प्रारूप नए सिरे से तैयार करने की आवश्यकता है। कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने फसल उत्तेजना मॉडल का उपयोग किया है, लेकिन इससे फसल उत्पादन में गिरावट को रोकने के लिए और भी कदम उठाए जाने चाहिए।
शहरी क्षेत्रों की सुरक्षा
शहरी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों में निवेश, जल निकासी के बुनियादी ढांचे में सुधार और हरित बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है। शहरी वनों और ठंडी छतों जैसे उपाय जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान को कम करने में मदद कर सकते हैं।
भारत को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए ऊर्जा उत्पादन विधियों में बदलाव, अनुकूलन उपायों को प्राथमिकता देने और जलवायु बीमा उपायों को सक्षम बनाने की आवश्यकता है। इन कदमों को लागू करके ही जलवायु अनुकूल हरित विकास संभव हो सकेगा। यह सुनिश्चित करने के लिए कि हरित विकास के लाभ सभी तक पहुँचें, सरकार को इन उपायों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए ठोस प्रयास और वित्तीय संसाधन प्रदान करने की आवश्यकता है।
Source- दैनिक जागरण