बच्चों पर बढ़ती गर्मी का कहर: दादा-दादी के समय से दोगुना ज्यादा गर्म दिनों का सामना करेंगे बच्चे

saurabh pandey
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दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन का असर अब और भी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। तापमान में लगातार हो रही वृद्धि ने बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को प्रभावित किया है, और इसका सबसे अधिक खामियाजा बच्चे भुगत रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के हालिया विश्लेषण के अनुसार, आज दुनिया के 46.6 करोड़ बच्चे उन इलाकों में रहने को मजबूर हैं, जहां अत्यंत गर्म दिनों की संख्या उनके दादा-दादी के समय की तुलना में दोगुनी हो गई है।

यूनिसेफ का विश्लेषण

यूनिसेफ ने अपने इस अध्ययन में 1960 के दशक और 2020-2024 के औसत गर्म दिनों की तुलना की है। अध्ययन में उन दिनों को शामिल किया गया है, जब औसत तापमान 35 डिग्री सेल्सियस या उससे ऊपर था। यह देखा गया है कि इन अत्यधिक गर्म दिनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जिससे बच्चों के जीवन पर गहरा असर पड़ रहा है।

बच्चों पर बढ़ता संकट

आज दुनिया का हर पांचवां बच्चा उन क्षेत्रों में रह रहा है, जहां गर्म दिनों की संख्या पिछले छह दशकों में दोगुने से भी ज्यादा हो गई है। यह स्थिति उनके स्वास्थ्य, शिक्षा, और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रही है। इसके साथ ही, इनमें से कई बच्चे ऐसे हैं, जिनके पास इस स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं।

देशों के आंकड़े

यूनिसेफ के विश्लेषण में 16 देशों में बच्चों को अब 30 दिनों से भी ज्यादा अतिरिक्त समय तक भीषण गर्म दिनों का सामना करना पड़ रहा है। उदाहरण के लिए, दक्षिण सूडान में बच्चों को अब सालाना 165 अत्यधिक गर्म दिनों का सामना करना पड़ रहा है, जबकि 1960 के दशक में यह संख्या 110 थी। इसी तरह, पैराग्वे में भी यह संख्या 36 से बढ़कर 71 हो गई है।

यह आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि जलवायु परिवर्तन का असर अब बच्चों पर सबसे ज्यादा हो रहा है, और इसे रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो भविष्य में इसका और भी भयावह रूप देखने को मिल सकता है।

बढ़ती गर्मी और लू की घटनाओं ने दुनिया भर में बच्चों के लिए एक गंभीर खतरा पैदा कर दिया है। यूनिसेफ के विश्लेषण से स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन के कारण आज के बच्चे अपने दादा-दादी के समय की तुलना में दोगुने से अधिक गर्म दिनों का सामना कर रहे हैं। इन गर्मियों के दिनों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है, और इससे बच्चों के स्वास्थ्य, जीवन की गुणवत्ता, और भविष्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

खासकर उन क्षेत्रों में, जहां बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, बच्चों के लिए यह स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण हो जाती है। यह समय की मांग है कि वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ ठोस कदम उठाए जाएं ताकि आने वाली पीढ़ियों को इस संकट का सामना न करना पड़े। अगर जल्द ही कार्रवाई नहीं की गई, तो बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ सकता है, और उन्हें इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

Source – down to earth

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