रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करनी होगी

saurabh pandey
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इंडियन जर्नल ऑफ फर्टिलाइजर में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, खेती की लागत में रासायनिक खादों का हिस्सा करीब 40 फीसदी है। ये खादें न सिर्फ पौधों को पोषण देती हैं, बल्कि मिट्टी की ताकत भी बढ़ाती हैं। हरित क्रांति के बाद से रासायनिक खादों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन अब समय आ गया है कि हम नए विकल्पों की तलाश करें और मौजूदा खादों को पर्यावरण के अनुकूल बनाएं।

भारत में प्राचीन काल से गोबर और कम्पोस्ट जैसी जैविक खादों का उपयोग होता आ रहा है। एक टन गोबर और कम्पोस्ट से करीब पांच किलो नाइट्रोजन, 2.5 किलो फास्फोरस और पांच किलो पोटाश प्राप्त किया जा सकता है। हालांकि, देश में जैविक खाद की क्षमता का 50 फीसदी भी इस्तेमाल नहीं हुआ है। जैविक खाद की एक फसल में डाली गई मात्रा का सिर्फ 30 फीसदी पहले साल में अवशोषित होता है, बाकी की मात्रा अगले फसल चक्रों में उपयोग की जाती है।

जैविक खाद में ह्यूमिक एसिड की मौजूदगी मिट्टी में फास्फोरस को बनाए रखने में मदद करती है। ह्यूमिक एसिड मिट्टी को हवा देती है, जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है और पौधों की वृद्धि को समर्थन मिलता है।

रासायनिक प्रदूषण को कम करने के लिए नैनो तकनीक पर आधारित नैनो उर्वरक भी एक संभावित समाधान हो सकते हैं। 20 से 50 प्रतिशत दक्षता वाले नाइट्रोजन का उपयोग खेती को जलवायु के अनुकूल बनाता है। नैनो तकनीक से तैयार उर्वरक पौधों को संपूर्ण पोषक तत्व प्रदान करते हैं और इनमें 1 एनएम (नैनो मीटर) से लेकर 10 एनएम आकार के सूक्ष्म घटकों का उपयोग किया जाता है।

सहकारी संस्था इफको द्वारा पेश किए गए नैनो यूरिया (तरल), नैनो जिंक, और नैनो कॉपर की पोषण मूल्य अन्य रासायनिक उर्वरकों की तुलना में काफी अधिक है। नैनो यूरिया की एक बोतल का उपयोग एक बैग यूरिया की जगह ले सकता है। जब इसे फसल की पत्तियों पर छिड़का जाता है, तो यह रंध्रों और अन्य छिद्रों के माध्यम से पौधे में आसानी से प्रवेश कर जाता है और सीधे पौधे की कोशिकाओं द्वारा अवशोषित हो जाता है।

यदि किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीजों के साथ-साथ पर्यावरण अनुकूल उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए, तो मिट्टी के साथ-साथ पूरा पारिस्थितिकी तंत्र टिकाऊ और स्वस्थ रह सकता है।

रासायनिक खादों पर निर्भरता को कम करना और पर्यावरण अनुकूल विकल्पों की ओर बढ़ना समय की आवश्यकता है। हाल के अध्ययन और शोध से यह स्पष्ट होता है कि रासायनिक खादें खेती की लागत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, लेकिन इनका अत्यधिक उपयोग मिट्टी और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। जैविक खादों और नैनो तकनीक पर आधारित उर्वरकों का उपयोग बढ़ाने से न केवल मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान मिलेगा।

गोबर और कम्पोस्ट जैसी पारंपरिक जैविक खादों की उपयोगिता को बढ़ाने के साथ-साथ, नैनो उर्वरक जैसे आधुनिक तकनीकी समाधानों को अपनाना एक सतत कृषि प्रणाली की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। इन प्रयासों से न केवल फसलों की उत्पादकता में सुधार होगा, बल्कि मिट्टी और पारिस्थितिकी तंत्र की दीर्घकालिक सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी। किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीजों और उर्वरकों की उपलब्धता प्रदान करने से कृषि क्षेत्र में स्थिरता और विकास को बढ़ावा मिलेगा, और पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सकेगा।

source- दैनिक जागरण

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