हाल ही में केरल के वायनाड जिले में हुए भूस्खलन ने देशभर का ध्यान खींचा है, जिसमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई और कई गांव तबाह हो गए। इस विनाशकारी घटना के बाद, विपक्षी नेताओं, खासकर राहुल गांधी ने इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की है। हालांकि, इस संदर्भ में 2013 का एक महत्वपूर्ण पहलू सामने आया है, जब उत्तराखंड में आई बाढ़ के दौरान इसी तरह की मांग उठाई गई थी।
2013 में, जब उत्तराखंड में भीषण बाढ़ आई थी, तब संसद में यह स्पष्ट किया गया था कि भारत में प्राकृतिक आपदाओं को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। उस समय की सरकार ने इस बात पर जोर दिया था कि आपदा की गंभीरता, राज्य सरकार के प्रयास और केंद्र सरकार की सहायता के आधार पर निर्णय लिया जाता है।
वर्तमान परिदृश्य:
वायनाड में हुए भूस्खलन ने इस मुद्दे को एक बार फिर से जीवित कर दिया है। विपक्ष का तर्क है कि इस आपदा के पैमाने को देखते हुए इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाना चाहिए, ताकि केंद्र सरकार से अधिक सहायता प्राप्त हो सके। राहुल गांधी ने हाल ही में सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मुद्दे पर कदम उठाने के लिए आग्रह किया।
कानूनी और प्रशासनिक दृष्टिकोण:
हालांकि, वर्तमान कानूनी ढांचे में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जो प्राकृतिक आपदाओं को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की अनुमति देती हो। आपदा प्रबंधन मुख्य रूप से राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है, जबकि केंद्र सरकार केवल आवश्यकतानुसार सहायता प्रदान करती है। राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) से अतिरिक्त सहायता पर विचार केवल निर्धारित प्रक्रियाओं के बाद ही किया जाता है।
वायनाड की त्रासदी ने एक बार फिर से इस बहस को जन्म दिया है कि क्या देश में प्राकृतिक आपदाओं के लिए राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का कोई प्रावधान होना चाहिए। यह देखना बाकी है कि इस पर सरकार क्या कदम उठाती है, लेकिन फिलहाल, कानूनी स्थिति स्पष्ट है कि ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।
वायनाड में हुई त्रासदी ने एक बार फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या देश में प्राकृतिक आपदाओं को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने के लिए कोई कानूनी प्रावधान होना चाहिए। वर्तमान में, ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, और आपदा प्रबंधन की जिम्मेदारी मुख्य रूप से राज्य सरकार पर ही निर्भर करती है, जबकि केंद्र सरकार जरूरत के मुताबिक सहायता प्रदान करती है। इस मुद्दे पर चर्चा और बहस जारी है, और यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भविष्य में सरकार इस दिशा में क्या कदम उठाती है।
Source- दैनिक जागरण