समुद्री शैवाल से पार्किंसंस रोग की रोकथाम में नई उम्मीद

saurabh pandey
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हालिया अध्ययन से पता चला है कि समुद्री शैवाल में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट्स पार्किंसंस रोग की रोकथाम में मददगार हो सकते हैं। ओसाका मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर अकीको कोजिमा-युसा के नेतृत्व में किए गए इस शोध ने एक्लोनिया कावा पॉलीफेनोल्स के संभावित लाभों को उजागर किया है। यह अध्ययन पार्किंसंस रोग की रोकथाम के लिए इस समुद्री शैवाल के एंटीऑक्सीडेंट्स की प्रभावशीलता पर केंद्रित था।

अध्ययन में चूहों के पार्किंसंस रोग मॉडल का उपयोग किया गया, जिन्हें रोटेनोन जैसे यौगिक दिए गए थे, जो पार्किंसंस के लक्षणों को प्रेरित करते हैं। चूहों को एक सप्ताह तक एक्लोनिया कावा पॉलीफेनोल्स दिया गया, और इसके परिणाम सकारात्मक रहे। मोटर नियंत्रण में सुधार देखा गया और आंतों के मोटर फ़ंक्शन तथा कोलन की संरचना में भी सुधार हुआ।

प्रोफेसर कोजिमा-युसा ने बताया कि एक्लोनिया कावा AMPK (सक्रिय प्रोटीन किनेज) को सक्रिय करता है और इंट्रासेल्युलर ROS (प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजाति) को कम करता है, जिससे न्यूरोनल क्षति को रोका जा सकता है। यह अध्ययन समुद्री शैवाल आधारित एंटीऑक्सीडेंट्स की भूमिका को समझने और पार्किंसंस रोग के निवारक उपायों के विकास की दिशा में नई संभावनाएँ प्रस्तुत करता है।

इस शोध ने यह भी संकेत दिया है कि एक्लोनिया कावा के एंटीऑक्सीडेंट्स AMPK एंजाइम को सक्रिय कर सकते हैं, जो सेलुलर ऊर्जा के महत्वपूर्ण नियामक होते हैं। इसके सक्रियण ने ROS उत्पादन को कम किया और न्यूरोनल सेल मृत्यु को रोकने में मदद की। इन निष्कर्षों के आधार पर, समुद्री शैवाल पर आधारित निवारक उपायों और उपचारों के लिए आगे के शोध की आवश्यकता है।

समुद्री शैवाल, विशेषकर एक्लोनिया कावा, में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट्स की पार्किंसंस रोग की रोकथाम में संभावनाएं उजागर हो रही हैं। हाल के अध्ययन से पता चला है कि ये एंटीऑक्सीडेंट्स मोटर नियंत्रण और आंतों के स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं, जो पार्किंसंस रोग के इलाज के लिए एक नई दिशा प्रस्तुत करते हैं। एक्लोनिया कावा के पॉलीफेनोल्स ने न्यूरोनल क्षति को कम करने और ROS उत्पादन को नियंत्रित करने में प्रभावी भूमिका निभाई है। इन निष्कर्षों के साथ, समुद्री शैवाल आधारित उपचारों की संभावनाओं को समझने और पार्किंसंस रोग के लिए निवारक उपायों के विकास में आगे के शोध की आवश्यकता है।

Source- दैनिक जागरण

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