भोपाल में यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे के निपटान को लेकर विवाद, इंदौर में विरोध प्रदर्शन

saurabh pandey
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भोपाल गैस कांड के जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड के परिसर में मौजूद 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे का निपटान एक बार फिर विवाद का विषय बन गया है। इस कचरे की नष्ट करने की प्रक्रिया को लेकर गैस पीड़ितों और पर्यावरण संगठनों ने कड़ी आपत्ति जताई है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पिछले साल कचरे को नष्ट करने के लिए केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने 126 करोड़ रुपए की राशि जारी की थी। इसके साथ ही एक टाइमलाइन और अनुबंध भी तय किया गया था, लेकिन गैस पीड़ित संगठनों का कहना है कि यह कदम अपर्याप्त है। उनका आरोप है कि यह योजना कचरे की पूरी समस्या को हल करने में असमर्थ है।

भोपाल से संसद में निर्वाचित सांसद आलोक शर्मा ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है। उन्होंने लोकसभा में कचरे के निपटान की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं और इसे एक जरूरी मुद्दा बताया है। सांसद शर्मा के इस कदम को गैस पीड़ित संगठनों ने स्वागत किया है और उम्मीद जताई है कि इस समस्या का समग्र समाधान निकाला जाएगा।

इस बीच, इंदौर में भी कचरा जलाने की योजना के खिलाफ विरोध शुरू हो गया है। स्थानीय लोग और राजनीतिक दल कचरा जलाने से होने वाली संभावित स्वास्थ्य और पर्यावरणीय समस्याओं को लेकर चिंतित हैं। कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और स्थानीय अखबार पत्रिका ने इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है।

इस मुद्दे की जटिलता को देखते हुए, कचरे के निपटान के लिए पहले भी कई प्रयास किए जा चुके हैं। 2008 में पीथमपुर में 40 मीट्रिक टन कचरे को लैंडफिल किया गया था, और 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने 10 मीट्रिक टन कचरे को नष्ट करने का आदेश दिया था। हालांकि, वैज्ञानिक अनुसंधान के अनुसार, अभी भी कई जगहों पर जहरीला कचरा जमा है, जिससे आसपास के भूजल और पर्यावरण पर असर पड़ा है।

सरकार द्वारा भोपाल गैस कांड के स्थल पर एक स्मारक बनाने की योजना भी चल रही है, जिसकी लागत लगभग 380 करोड़ रुपए अनुमानित है। इस स्मारक के डिजाइन का काम दिल्ली की एक एजेंसी को सौंपा गया है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि स्मारक के निर्माण से पहले कचरे की पूरी तरह से सफाई होना जरूरी है।

भोपाल गैस कांड से जुड़े जहरीले कचरे के निपटान की प्रक्रिया पर लगातार विवाद और आपत्ति सामने आ रही है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी की गई 126 करोड़ रुपए की राशि और निर्धारित टाइमलाइन के बावजूद, गैस पीड़ित संगठनों का कहना है कि यह कदम अपर्याप्त है। सांसद आलोक शर्मा ने इस मुद्दे को संसद में उठाया है, लेकिन इंदौर में स्थानीय विरोध और विरोध प्रदर्शनों ने इस समस्या की जटिलता को उजागर किया है। कचरे के निपटान की प्रक्रिया में देरी और विरोध के कारण, समस्या का स्थायी समाधान अभी भी अनसुलझा है।

Source – down to earth

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