हाल ही में पेन स्टेट कॉलेज ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन ने यह स्पष्ट किया है कि आनुवंशिकी और प्रदूषित पर्यावरण दोनों ही बीमारियों की उत्पत्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि, नया शोध यह भी दर्शाता है कि पर्यावरणीय कारक बीमारी के जोखिम को आनुवंशिक योगदान से अधिक प्रभावित कर सकते हैं।
शोध की प्रमुख बातें
नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में वायु प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय कारकों को बीमारी के जोखिम में महत्वपूर्ण योगदान देते हुए बताया गया है। शोधकर्ताओं ने जीवनशैली और प्रदूषण के प्रभावों का विश्लेषण करने के लिए नए स्थानिक मिश्रित रैखिक प्रभाव (SMILE) मॉडल का उपयोग किया। इस मॉडल ने आनुवंशिकी और भौगोलिक स्थान डेटा को मिलाकर रोग जोखिमों का विश्लेषण किया।
पर्यावरणीय प्रभावों का महत्व
अध्ययन के वरिष्ठ लेखक, दाजियांग लियू, ने इस बात पर जोर दिया कि पर्यावरणीय प्रभावों को आनुवंशिक कारकों से अलग करना बेहद महत्वपूर्ण है। उनका कहना है कि यदि हम इन साझा पर्यावरणीय प्रदूषकों को अलग कर सकते हैं, तो हम बीमारी की आनुवंशिकता को अधिक सटीक रूप से समझ सकते हैं। इस अध्ययन में टाइप 2 मधुमेह और मोटापे जैसे रोगों में आनुवंशिक जोखिम को पुनर्मूल्यांकन किया गया। टाइप 2 मधुमेह के आनुवंशिक जोखिम को 37.7 प्रतिशत से घटाकर 28.4 प्रतिशत कर दिया गया, जबकि मोटापे के जोखिम में आनुवंशिक योगदान 53.1 प्रतिशत से घटकर 28.4 प्रतिशत हो गया।
पर्यावरणीय खतरे और स्वास्थ्य
अध्ययन ने पराबैंगनी प्रकाश और NOx जैसे पर्यावरणीय खतरों के स्वास्थ्य पर प्रभाव को भी उजागर किया। ये प्रदूषक डीएनए में क्षतिग्रस्त अणुओं को समाहित कर देते हैं, जिससे कोशिका मृत्यु हो सकती है और गंभीर बीमारियों जैसे कैंसर, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय और फेफड़ों की बीमारियां, और अल्जाइमर रोग उत्पन्न हो सकते हैं। विशेष रूप से, NO2 उच्च कोलेस्ट्रॉल और मधुमेह जैसी स्थितियों को सीधे प्रभावित करता पाया गया, जबकि PM2.5 फेफड़ों के कार्य और नींद संबंधी विकारों को प्रभावित करता है।
इस शोध के परिणाम बताते हैं कि बीमारियों की रोकथाम और उपचार के लिए आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारकों के बीच संतुलन को समझना आवश्यक है। इससे सटीक दवा और रोग की रोकथाम रणनीतियों को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में स्वास्थ्य नीतियों और अनुसंधान को इस दिशा में और अधिक गहराई से काम करना चाहिए।
source and data- दैनिक जागरण