बढ़ते प्रदूषण के कारण धूम्रपान न करने वालों में फेफड़ों के कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, वर्तमान में धूम्रपान न करने वालों में फेफड़ों के कैंसर के मामलों की संख्या बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई है, जो दस साल पहले नगण्य थी।
प्रदूषण के कारण
विशेषज्ञों का कहना है कि डीजल और केरोसिन का इस्तेमाल स्थिति को गंभीर बना रहा है। पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि मरीज धूम्रपान नहीं करते, फिर भी वे फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित हो रहे हैं। यह मरीजों के मेडिकल इतिहास से पता चलता है कि वे लंबे समय तक प्रदूषित हवा वाले क्षेत्रों में रहे हैं और उन्हें अपने घरों के अंदर भी साफ हवा नहीं मिल रही है।
फेफड़ों के कैंसर के लक्षण
- अत्यधिक खांसी
- खांसी में खून आना
- सीने में दर्द
- सांस लेने में दिक्कत
जांच और उपचार
डॉक्टरों का कहना है कि भारी धूम्रपान करने वालों को 40 की उम्र के बाद साल में एक बार कम खुराक वाला सीटी स्कैन जरूर करवाना चाहिए। इससे फेफड़ों के कैंसर का जल्द पता लगाया जा सकता है। कुछ मामलों में यह बीमारी कम उम्र के मरीजों में भी देखने को मिलती है, लेकिन ज्यादातर मामलों में यह बीमारी 40 साल के बाद ही होती है।
एम्स के पल्मोनरी, क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन विभाग के पूर्व प्रमुख प्रोफेसर डॉ. जीसी खिलनानी ने कहा कि बढ़ते प्रदूषण स्तर ने इनडोर और आउटडोर वातावरण में स्थिति को खराब कर दिया है। इससे धूम्रपान न करने वालों में फेफड़े के कैंसर के मामले 40 प्रतिशत तक पहुंच गए हैं।
टीबी और कैंसर की जांच
डॉक्टरों का कहना है कि मरीजों की जांच में पाया गया है कि काफी संख्या में रोगी लक्षणों की कमी के कारण टीबी का इलाज कराते हैं। कैंसर का पता तब चलता है जब स्थिति गंभीर हो जाती है। अगर समय रहते कैंसर की जांच करा ली जाए तो शुरुआती चरण में ही इसका पता लगाना आसान हो जाता है।
नई दवाएं
फेफड़े के कैंसर के इलाज में हर साल सुधार हो रहा है। शोध और परीक्षण के बाद कुछ अतिरिक्त एडवांस दवाएं भी मिली हैं। इनकी मदद से एडवांस स्टेज में मरीजों की जिंदगी भी बढ़ाई जा सकती है। नई दवाओं ने एडवांस स्टेज में मरीजों की जिंदगी में सुधार किया है, वहीं शुरुआती स्टेज में मरीजों की हालत पहले से बेहतर हुई है।
बढ़ते प्रदूषण के कारण धूम्रपान न करने वालों में फेफड़ों के कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, डीजल और केरोसिन का उपयोग, इनडोर और आउटडोर प्रदूषण की बढ़ती मात्रा, और स्वच्छ हवा की कमी ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है। फेफड़ों के कैंसर के लक्षणों पर ध्यान देना और नियमित जांच कराना अत्यंत महत्वपूर्ण है, विशेषकर 40 की उम्र के बाद। टीबी और कैंसर की जांच के समय पर होने से बीमारी का जल्द पता लगाया जा सकता है, जिससे इलाज के परिणाम बेहतर हो सकते हैं। नई एडवांस दवाओं की उपलब्धता ने इलाज में सुधार किया है, जिससे मरीजों की जिंदगी की गुणवत्ता और अवधि में वृद्धि हो रही है। भारत को प्रदूषण नियंत्रण और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में इस गंभीर समस्या से निपटा जा सके।
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