केरल के वायनाड में भूस्खलन से भारी तबाही: जिम्मेदार कौन ?

saurabh pandey
3 Min Read

वायनाड, केरल – 30 जुलाई की सुबह केरल के वायनाड जिले के चूरलमाला और मुंडक्कई गांवों में हुए भयावह भूस्खलन ने 140 से अधिक लोगों की जान ले ली और सैकड़ों को फंसा दिया है। विशेषज्ञ इस विनाशकारी घटना के पीछे जलवायु परिवर्तन और मानव गतिविधियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि केरल में इस प्रकार की घटनाओं की आवृत्ति बढ़ रही है, लेकिन इसके बावजूद मानव गतिविधियों में कमी नहीं आ रही है। राज्य में खदानों की खुदाई, निर्माण कार्य, पहाड़ियों का समतलीकरण और मोनो-क्रॉप खेती जैसी गतिविधियां जारी हैं, जो भूस्खलन के खतरे को और बढ़ा रही हैं।

आवश्यक कदम और सरकारी नीति

डाउन टू अर्थ (डीटीई) से बातचीत में विशेषज्ञों ने कहा कि केरल को भूस्खलन और बाढ़ की आशंका वाले पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए एक सरकारी नीति बनानी चाहिए। इन क्षेत्रों से लोगों को स्थानांतरित करने और पुनर्वास करने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि राज्य में भूस्खलन के खतरे का सूक्ष्म स्तर पर मानचित्रण तत्काल किया जाना चाहिए।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

केरल वन अनुसंधान संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक टी वी सजीव ने बताया कि भारी बारिश और जलवायु परिवर्तन के कारण विभिन्न मानवजनित गतिविधियों के परिणामस्वरूप भूस्खलन हो रहे हैं। चूरलमाला और मुंडक्कई जैसे क्षेत्रों में मोनो-क्रॉप चाय बागान और पर्यटक इंफ्रास्ट्रक्चर ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है।

मिट्टी की पाइपिंग

चार साल पहले केरल में पुथुमाला भूस्खलन के बाद ‘मिट्टी की पाइपिंग’ नामक हाइड्रोलिक प्रक्रिया का उदय हुआ। इस प्रक्रिया में भूमिगत सतह में हवा से भरी खाली जगह बन जाती है, जिससे भूस्खलन और धंसाव होता है। वैज्ञानिक एम जी मनोज के अनुसार, हाल के भूस्खलन में मिट्टी की पाइपिंग की सभी विशेषताएं दिखाई देती हैं।

केरल आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के भूस्खलन खतरा प्रोफाइल मानचित्र के अनुसार, वायनाड जिले का चालीस प्रतिशत से अधिक हिस्सा भूस्खलन के लिए अतिसंवेदनशील है। चूरलमाला, मुंडाकाई और पुथुमाला सहित मेप्पाडी क्षेत्र विशेष रूप से गंभीर हैं।

वायनाड जिले में हुए इस भूस्खलन ने एक बार फिर दिखा दिया है कि जलवायु परिवर्तन और मानवजनित गतिविधियां किस प्रकार से प्राकृतिक आपदाओं को बढ़ावा दे रही हैं। विशेषज्ञों की मांग है कि सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाए और पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।

source – down to earth

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *