प्रयागराज, उत्तर प्रदेश: एक बार सूख चुकी लपरी नदी का पुनर्जीवन एक युवा अधिकारी और ग्रामीणों की अथक मेहनत से संभव हो गया है। यह नदी, जो एक समय पर केवल बुजुर्गों की कहानियों में ही सुनी जाती थी, अब दस ग्राम पंचायतों के हजारों लोगों के लिए जीवन की सांस बन चुकी है।
कोरांव क्षेत्र की लपरी नदी, जो ग्राम पंचायत रत्याउरा से घेघसाही तक लगभग 17.5 किलोमीटर बहती है और टोंस नदी में मिल जाती है, अब हरियाली से घिरी हुई है। नदी के दोनों किनारों पर फलदार और छायादार पौधे लगाए जा रहे हैं, जिससे इसका पुनर्जीवन सुनिश्चित हो रहा है।
लपरी नदी का पतन वर्ष 2000 के आसपास शुरू हुआ और 2010 तक इसका मार्ग पूरी तरह से जर्जर हो गया था। नदी के तल में मिट्टी भर जाने और झाड़ियों, पेड़ों, तथा मिट्टी के टीले के कारण नदी की पहचान मिट गई थी।
मैकेनिकल इंजीनियर और 2018 बैच के यूपी कैडर के आईएएस अधिकारी गौरव कुमार ने अपने नवाचार से नदी का पुनरुद्धार किया। उनका मानना है कि यदि ईमानदारी से प्रयास किया जाए तो प्राकृतिक संसाधनों का पुनर्जीवन संभव है। उनका नेतृत्व, ग्रामीणों के सहयोग से, नदी के तल की खुदाई और संरक्षण प्रयासों ने नदी को फिर से जीवित कर दिया है।
गौरव कुमार ने कहा, “यह परियोजना हमारे दृढ़ संकल्प और सामुदायिक प्रयासों का प्रतीक है। हम सभी की मेहनत और सहयोग से नदी ने अपने पुराने स्वरूप को फिर से पाया है। यह सफलता हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है और हमें प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की दिशा में और काम करने की प्रेरणा देती है।”
5 जून 2023 को पर्यावरण दिवस पर इस परियोजना की शुरुआत की गई थी। मनरेगा योजना के तहत विभिन्न कार्ययोजनाओं का निर्माण किया गया, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिला और नदी के मार्ग को फिर से गहरा किया गया।
अब, कई वर्षों के बाद, नदी के किनारों पर पारंपरिक धान की खेती शुरू हो गई है, जिससे न केवल पर्यावरण संतुलित हुआ है बल्कि स्थानीय समुदाय को भी आर्थिक और सामाजिक लाभ प्राप्त हुए हैं। नदी का पुनर्जीवन अब क्षेत्र के बच्चों के लिए भी एक जीवंत अनुभव बन चुका है, जो अब केवल कहानियों में नहीं, बल्कि वास्तविकता में नदी को देख सकते हैं।
source and data – दैनिक जागरण