जलवायु परिवर्तन: 2041 से 2060 तक उष्णकटिबंधीय स्थलीय प्रजातियां 54% तक खत्म हो सकती हैं

saurabh pandey
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जलवायु परिवर्तन भविष्य में स्थलीय और समुद्री जानवरों और पौधों की विभिन्न प्रजातियों के लिए एक गंभीर खतरा बन सकता है। हाल ही में किए गए एक शोध के अनुसार, अगले 20 वर्षों में लगभग 39% प्रजातियों की कमी आ सकती है। पारंपरिक मॉडलों से की गई भविष्यवाणियों के अनुसार, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में स्थानीय प्रजातियों की विविधता 2041 से 2060 के बीच 54% तक कम हो सकती है।

इस शोध का नेतृत्व इफ्रेमर और लॉज़ेन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने किया है, और इसके परिणामों को नेचर में प्रकाशित किया गया है। इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने अपने नए मॉडल को दुनिया भर के लगभग 25,000 स्थलीय और समुद्री प्रजातियों पर आजमाया। इस शोध में अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) द्वारा प्रदान किए गए भौगोलिक वितरण मानचित्र का उपयोग किया गया है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि 39% की गिरावट भी चिंताजनक है, और जलवायु परिवर्तन तथा जैव विविधता पर इसके प्रभाव को कम करने के लिए तत्काल उपाय किए जाने की आवश्यकता है। उनके मॉडल के अनुसार, 2015 के परिदृश्यों को मिलाकर देखा गया कि इन स्थलीय प्रजातियों में से 49% वर्तमान जलवायु परिस्थितियों की सीमाओं से सटे स्थानों पर रहती हैं, जबकि 51% वर्तमान जलवायु सीमाओं से परे रहती हैं। समुद्री प्रजातियों के लिए यह आंकड़ा बढ़कर 92% हो जाता है।

उष्णकटिबंधीय क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होंगे

शोधकर्ताओं के अनुसार, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सबसे अधिक नुकसान होगा। पारंपरिक मॉडल के अनुसार, 2041-2060 तक उष्णकटिबंधीय स्थलीय प्रजातियों का 54% हिस्सा समाप्त हो जाएगा। हालांकि, नए मॉडल में केवल 39% की गिरावट की भविष्यवाणी की गई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि उष्णकटिबंधीय प्रजातियाँ जलवायु परिवर्तन को पहले की तुलना में बेहतर तरीके से सहन कर सकती हैं क्योंकि वर्तमान जलवायु 2041 तक मौजूद नहीं होगी। ये प्रजातियाँ पहले से ही अपने जलवायु क्षेत्र की सीमाओं से बाहर रह रही हैं और वे पर्याप्त गर्म तापमान को सहन नहीं कर पाएंगी।

जलवायु परिवर्तन भविष्य में प्रजातियों की विविधता और जैव विविधता पर गहरा प्रभाव डालने की संभावना है। आगामी दशकों में, उष्णकटिबंधीय स्थलीय प्रजातियों की विविधता में 54% तक की कमी की भविष्यवाणी की गई है, जबकि जलवायु परिवर्तन के कारण कुल प्रजातियों में 39% की गिरावट हो सकती है। यह अध्ययन दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझना और उनका मुकाबला करने के लिए तत्काल और प्रभावी उपाय किए जाने की आवश्यकता है।

वर्तमान जलवायु मॉडल और शोध के परिणाम यह स्पष्ट करते हैं कि उष्णकटिबंधीय प्रजातियाँ जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकती हैं, और उनके पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। भविष्य में प्रजातियों की रक्षा और उनके प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा के लिए वैश्विक स्तर पर समन्वित प्रयासों की आवश्यकता होगी। यह समय है कि हम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को गंभीरता से लें और अपनी रणनीतियों को समायोजित करें ताकि हम अपनी जैव विविधता को संरक्षित कर सकें और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रख सकें।

source and data -अमर उजाला

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