आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर ने खोजा नया ग्रह ‘सुपर जुपिटर’

saurabh pandey
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विज्ञान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करते हुए, आईआईटी कानपुर के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रशांत पाठक के नेतृत्व में खगोलविदों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने एक नया और विशाल ग्रह खोजा है। यह ग्रह बृहस्पति से छह गुना बड़ा है और इसे ‘सुपर जुपिटर’ नाम दिया गया है। यह खोज न केवल वैज्ञानिक समुदाय के लिए रोमांचक है, बल्कि यह हमारे ब्रह्मांड को समझने के नए रास्ते खोलती है।

ग्रह की विशेषताएं और खोज की तकनीक

यह ग्रह, जिसे एप्सिलॉन इंड एबी नाम दिया गया है, पृथ्वी से 12 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है। इस विशाल ग्रह को अपने तारे की परिक्रमा करने में 200 साल का समय लगता है। यह ग्रह हमारे सौरमंडल के बाहर डायरेक्ट इमेजिंग तकनीक की मदद से खोजा गया पहला ग्रह है। जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप के मध्य अवरक्त उपकरण का उपयोग करके इस ग्रह की खोज की गई है।

वैज्ञानिक महत्व और आगे की योजनाएं

आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. मनिंद्र अग्रवाल ने इस खोज को सौरमंडल से बाहर के ग्रहों की खोज में एक मील का पत्थर बताया है। उन्होंने कहा, “इससे भविष्य में अन्य शोधों के लिए मजबूत आधार तैयार होगा।”

डॉ. प्रशांत पाठक ने बताया कि इस ग्रह की वायुमंडलीय संरचना असामान्य प्रतीत होती है। “इस खोज से हमें ऐसे ग्रहों के बारे में और अधिक जानने का अवसर मिलता है, जो हमारे ग्रहों से बहुत अलग हैं। हमारा अगला लक्ष्य इसका स्पेक्ट्रा प्राप्त करना है, जो हमें ग्रह की जलवायु और रासायनिक संरचना का विस्तृत फिंगरप्रिंट प्रदान करेगा,” उन्होंने कहा।

भविष्य की संभावनाएं और अन्य ग्रहों की खोज

यह खोज न केवल वर्तमान शोधकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी महत्वपूर्ण संभावनाएं खोलती है। सौर मंडल से बाहर के ग्रहों को एक्सोप्लैनेट कहा जाता है और जुलाई के मध्य तक इनकी संख्या 5,690 है। नासा के अनुसार, अंतरिक्ष और जमीन पर दूरबीनें भी अधिक ग्रहों की तलाश कर रही हैं, खासकर ऐसे ग्रहों की जो पृथ्वी जैसे हो सकते हैं।

इस खोज से जुड़े वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यह ग्रहों के निर्माण, वायुमंडलीय संरचना और हमारे सौर मंडल से परे जीवन की संभावना के बारे में गहरी समझ हासिल करने में मदद करेगी।

आईआईटी कानपुर की विज्ञान जगत में भूमिका

आईआईटी कानपुर ने विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में एक बार फिर से अपनी महत्वपूर्ण भूमिका साबित की है। इस खोज ने न केवल भारतीय वैज्ञानिकों को गौरवान्वित किया है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारतीय खगोलविदों की प्रतिष्ठा को बढ़ाया है।

Source and data – दैनिक जागरण

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