योगी सरकार द्वारा पूर्वांचल के पनियाला पेड़ को पुनर्जीवित करने की योजना

saurabh pandey
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पूर्वांचल का पारंपरिक फल पनियाला, जो अब लुप्तप्राय हो चुका है, योगी आदित्यनाथ की पहल पर पुनर्जीवित किया जाएगा। लखनऊ स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ने इस दिशा में पिछले साल से काम शुरू किया है। गोरखपुर स्थित जिला उद्यान विभाग और स्थानीय किसानों की सहायता से इस परियोजना को आगे बढ़ाया जा रहा है।

मुख्य बिंदु:

  • उपज में वृद्धि और गुणवत्ता में सुधार: केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान यह सुनिश्चित करेगा कि पनियाला के पौधों की उपज बढ़े और फलों की गुणवत्ता में सुधार हो। इसके लिए बागवानों को कैनोपी प्रबंधन का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा, जिससे बागों का रखरखाव आसान होगा।
  • लाभान्वित क्षेत्र: इस पहल से पूर्वांचल के एक दर्जन जिलों के लाखों किसान परिवार लाभान्वित होंगे। पनियाला एंटीऑक्सीडेंट्स और जीवाणुरोधी गुणों से भरपूर होता है और इसकी वापसी से स्थानीय स्तर पर इसका उपयोग बढ़ेगा।
  • पनियाला की विशेषताएँ: पनियाला का फल बैंगनी रंग का, गोल और चपटा होता है। इसका स्वाद खट्टा, मीठा और कसैला होता है। यह औषधीय गुणों से भरपूर है और पेट संबंधित समस्याओं में लाभकारी होता है।
  • भविष्य की योजनाएँ: संस्थान पनियाला के स्वस्थ पौधों का चयन कर उन्हें संरक्षित करेगा और ग्राफ्टिंग विधि से नए पौधे तैयार करेगा। इसके साथ ही पनियाला को जीआई टैग मिलने से इसकी मांग बढ़ेगी और यह गोरखपुर का एक खास ब्रांड बन सकता है।

उपलब्धियाँ और भविष्य की दिशा:

  • जीआई टैग का लाभ: जीआई टैग मिलने से पनियाला को कानूनी संरक्षण मिलेगा और इसके विपणन में वृद्धि होगी। इससे गोरखपुर और आसपास के जिलों के किसानों को विशेष लाभ होगा।
  • प्रस्तावित प्रयोग: पनियाला के फल जैम, जैली और जूस के रूप में लंबे समय तक सुरक्षित रखे जा सकते हैं, और इसका उपयोग लकड़ी, जलावन और कृषि कार्यों के लिए भी किया जा सकता है।

योगी सरकार की इस पहल से पनियाला की वापसी न केवल पारंपरिक फल को संरक्षित करेगी, बल्कि इससे जुड़े किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा।

पूर्वांचल के पनियाला का पुनरुद्धार योगी सरकार की एक महत्वाकांक्षी पहल है, जिसका उद्देश्य इस लुप्तप्राय फल की पैदावार और गुणवत्ता को सुधारना है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान द्वारा किए जा रहे प्रयासों से पनियाला की फसलें बेहतर होंगी और बागवानों को कैनोपी मैनेजमेंट का प्रशिक्षण प्राप्त होगा। जीआई टैगिंग के माध्यम से पनियाला की ब्रांडिंग और संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा, जिससे न केवल स्थानीय किसानों को लाभ होगा, बल्कि गोरखपुर और आसपास के क्षेत्रों को एक विशिष्ट पहचान भी मिलेगी। पनियाला के औषधीय गुण और उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद इसे भविष्य में एक महत्वपूर्ण कृषि उत्पाद बना सकते हैं।

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