सुप्रीम कोर्ट ने जीएम फसलों पर राष्ट्रीय नीति बनाने की सिफारिश की, चर्चा में जीएम फसलें

saurabh pandey
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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सरसों की संकर किस्म डीएमएच-11 को पर्यावरण में परीक्षण के लिए छोड़ने के केंद्र सरकार के निर्णय पर विभाजित राय दी। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने इस मामले को मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के पास भेजने का निर्देश दिया ताकि बड़ी पीठ इस पर अंतिम फैसला दे सके।

दोनों न्यायाधीशों ने जीएम फसलों पर एक व्यापक राष्ट्रीय नीति बनाने की सिफारिश की। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि जीएम फसलों को पर्यावरण में छोड़ने के निर्णय में त्रुटियां हैं, क्योंकि संबंधित बैठक में स्वास्थ्य विभाग के प्रतिनिधि मौजूद नहीं थे और कई अन्य सदस्य भी अनुपस्थित थे। उन्होंने पर्यावरण मंत्रालय से इस विषय पर सभी हितधारकों और विशेषज्ञों से परामर्श करने का आग्रह किया और कहा कि यह प्रक्रिया जल्द समाप्त की जानी चाहिए।

इसके विपरीत, जस्टिस संजय करोल ने जीईएसी के निर्णय को उचित और गैर-मनमाना करार दिया। उन्होंने कहा कि जीएम सरसों की फसल को पर्यावरण में परीक्षण के लिए सख्त सुरक्षा उपायों के साथ अनुमति दी जानी चाहिए। जस्टिस करोल ने जीईएसी की अनुशंसा का समर्थन किया, जिसमें 18 और 25 अक्टूबर 2022 को जीएम सरसों के पर्यावरण में उत्सर्जन की मंजूरी दी गई थी।

इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि जीएम फसलों की पर्यावरणीय प्रभावों की निगरानी और नियमन के लिए एक सुविचारित राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता है।

चर्चा में जीएम फसलें

जीनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) फसलों को लेकर हाल के वर्षों में कई विवाद और चर्चाएँ उठी हैं। ये फसलें ऐसे पौधे हैं जिनके डीएनए में वैज्ञानिक तरीके से बदलाव किया गया है ताकि उनकी गुणवत्ता, उत्पादन क्षमता और प्रतिकूल परिस्थितियों के प्रति सहनशीलता में सुधार किया जा सके। लेकिन जीएम फसलों के पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी प्रभावों को लेकर चिंताओं का एक बड़ा समूह भी है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मुद्दे पर विभाजित राय और निर्देशों ने इस बहस को और भी प्रासंगिक बना दिया है।

जीएम फसलों की संभावनाएं

जीएम फसलों के समर्थक यह तर्क करते हैं कि ये फसलें उच्च उत्पादन क्षमता, बेहतर पोषक तत्वों की गुणवत्ता और कीटों तथा रोगों के प्रति बेहतर प्रतिरोधी होती हैं। उदाहरण के लिए, डीएमएच-11, एक जीएम सरसों की किस्म, को तेल की अधिक गुणवत्ता और पैदावार बढ़ाने के लिए विकसित किया गया है। इस प्रकार की फसलों की मदद से खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने और कृषि क्षेत्र की उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है।

विवाद और चिंताएं

हालांकि, जीएम फसलों को लेकर कई चिंताएं भी उठती हैं। इन फसलों के संभावित स्वास्थ्य प्रभाव, पर्यावरणीय जोखिम और जैव विविधता पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर कई सवाल हैं। जीएम फसलों को लेकर आपत्तियाँ मुख्य रूप से इस बात को लेकर हैं कि क्या ये फसलें लंबे समय में पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डाल सकती हैं।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जीएम फसलों पर निर्णय देते हुए केंद्र सरकार को एक राष्ट्रीय नीति बनाने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि जीएम फसलों को पर्यावरण में छोड़ने से पहले सभी हितधारकों और विशेषज्ञों से परामर्श किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय जीएम फसलों पर एक सुविचारित और सर्वसम्मत नीति बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

भविष्य की राह

जीएम फसलों पर एक ठोस और संतुलित नीति तैयार करने से यह सुनिश्चित होगा कि इन फसलों के लाभों को सुरक्षित और प्रभावी तरीके से अपनाया जा सके। इसके साथ ही, पर्यावरणीय और स्वास्थ्य जोखिमों को भी कम किया जा सके। इस प्रकार की नीति से वैज्ञानिक शोध और विकास को बढ़ावा मिलेगा और साथ ही सार्वजनिक विश्वास और स्वीकार्यता को भी प्राप्त किया जा सकेगा।

निष्कर्षतः, जीएम फसलों के मुद्दे पर एक ठोस और संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि हमारे पास एक स्पष्ट नीति हो जो सभी संभावित जोखिमों और लाभों का संतुलित आकलन करती हो और वैज्ञानिक प्रगति के साथ-साथ पर्यावरण और स्वास्थ्य सुरक्षा को प्राथमिकता देती हो।

source and data- दैनिक जागरण

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