जलवायु परिवर्तन ने पृथ्वी की धुरी को पिछले 120 वर्षों में 10 मीटर तक खिसका दिया है, यह बात एक नए अध्ययन में सामने आई है। यह महत्वपूर्ण शोध नासा द्वारा वित्तपोषित किया गया है और नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन से पता चलता है कि बर्फ की चादरों, ग्लेशियरों और समुद्र के स्तर में हुए परिवर्तनों के कारण यह विस्थापन हुआ है।
स्विट्जरलैंड के ईटीएच ज्यूरिख विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के अनुसार, इस अध्ययन में पृथ्वी के ध्रुवीय गति में आवर्ती उतार-चढ़ाव को मुख्य रूप से भूजल, बर्फ की चादरों और ग्लेशियरों में बदलाव के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। इस अध्ययन ने वर्ष 1900 से 2018 तक के डेटा का विश्लेषण किया है, और पाया है कि इन तत्वों की गतिशीलता के कारण पृथ्वी के घूर्णन में भी बदलाव आया है।
नासा के अध्ययन के सह-लेखक, सुरेंद्र अधिकारी ने बताया, “ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी में होने वाले बढ़ते परिवर्तन ग्रह के घूर्णन में होने वाले परिवर्तनों के प्रमुख चालक हैं।” दूसरा अध्ययन, जो नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज की कार्यवाही में प्रकाशित हुआ है, ने भी पुष्टि की है कि 2000 से दिन की लंबाई में 1.33 मिलीसेकंड की वृद्धि हो रही है, और यह वृद्धि प्रति शताब्दी 2.62 मिलीसेकंड तक पहुंच सकती है।
यह परिवर्तन, जो चंद्रमा के ज्वारीय खिंचाव के प्रभाव को पार कर सकता है, पृथ्वी के दिन की लंबाई को प्रति शताब्दी 2.4 मिलीसेकंड बढ़ा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियरों और बर्फ की चादरों का तेजी से पिघलना इस वृद्धि का मुख्य कारण है।
यह शोध जलवायु परिवर्तन और पृथ्वी की धुरी में बदलाव के बीच संबंधों को समझने में महत्वपूर्ण कदम है। इसके परिणाम वैश्विक जलवायु नीतियों और अनुसंधान को नया दृष्टिकोण प्रदान कर सकते हैं, और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति जागरूकता बढ़ा सकते हैं। यह अध्ययन हमें यह समझने में मदद करता है कि कैसे मानव गतिविधियाँ और जलवायु परिवर्तन पृथ्वी की भौतिक विशेषताओं को प्रभावित कर रही हैं, और भविष्य में इसके संभावित परिणाम क्या हो सकते हैं।
source and data – दैनिक जागरण