यमुना में धार्मिक या अन्य संरचनाओं पर हाईकोर्ट का सख्त रुख

saurabh pandey
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नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने यमुना बाढ़ क्षेत्र में किसी भी प्रकार के अतिक्रमण को रोकने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यमुना क्षेत्र में धार्मिक या अन्य संरचनाओं को खड़ा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती और जरूरत पड़ने पर इन्हें हटाया जाना चाहिए। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने गीता कॉलोनी क्षेत्र में नदी के पास बने ‘प्राचीन शिव मंदिर’ को गिराने के एकल पीठ के फैसले में हस्तक्षेप करने से भी इनकार कर दिया।

मंदिर के निर्माण पर सवाल

अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता प्राचीन शिव मंदिर आवाम अखाड़ा समिति के पास जमीन पर वैधता दिखाने के लिए कोई दस्तावेज नहीं है। यह मंदिर यमुना नदी बाढ़ क्षेत्र में स्थित है और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र में अनाधिकृत रूप से बना है। अदालत ने यह भी कहा कि चूंकि मंदिर का ढांचा डीडीए द्वारा पहले ही ध्वस्त कर दिया गया है, इसलिए आगे विचार करने के लिए कुछ भी नहीं बचा है।

एमसीडी की लापरवाही पर हाईकोर्ट की टिप्पणी

दूसरी ओर, दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) की अनधिकृत निर्माण को रोकने में लापरवाही पर भी हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी की। दक्षिणी दिल्ली की न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी में अनधिकृत निर्माण के मुद्दे पर एमसीडी द्वारा दाखिल की गई स्टेटस रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव की बेंच ने कहा कि एमसीडी ने तथ्यों के बारे में न केवल याचिकाकर्ता बल्कि कोर्ट को भी गुमराह किया है।

प्रशासनिक विफलता का उदाहरण

कोर्ट ने कहा कि अनधिकृत निर्माण में भारी निवेश, धन और श्रम की आवश्यकता होती है और ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में भी भारी धन की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में संबंधित अधिकारी प्रशासन के अधिकार का दुरुपयोग करके फरार नहीं हो सकता। यह मामला प्रशासनिक विफलता का उदाहरण है। कोर्ट ने एमसीडी कमिश्नर से सिलसिलेवार हलफनामा दाखिल करने और इस घटना के लिए जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ कार्रवाई के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देने को कहा है।

source- दैनिक जागरण

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