राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम धूल प्रदूषण नियंत्रण तक सीमित: सीएसई

saurabh pandey
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नई दिल्ली: पर्यावरण थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने केंद्र सरकार के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु अभियान (एनसीएपी) की प्रगति पर सवाल उठाए हैं। सीएसई की शुक्रवार को जारी मूल्यांकन रिपोर्ट ‘राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम सुधार का एजेंडा’ में यह खुलासा किया गया है कि अभियान धूल प्रदूषण नियंत्रण तक सीमित रह गया है। एनसीएपी को 131 प्रदूषित शहरों के लिए 10 जनवरी 2019 को शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य 2025-26 तक कण प्रदूषण में 40 प्रतिशत की कमी लाना है।

धनराशि का उपयोग

सीएसई रिपोर्ट बताती है कि एनसीएपी के तहत शहरों को फंड प्राप्त करने के लिए पीएम10 के स्तर में सुधार प्रदर्शित करना आवश्यक है। 2019 से 2024 तक दिल्ली को प्राप्त 42.69 करोड़ रुपये में से केवल 12.6 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। 131 शहरों के लिए जारी 10,566 करोड़ रुपये में से 6,806.15 करोड़ रुपये (64 प्रतिशत) उपयोग किए गए हैं।

नीति और कार्यान्वयन

सीएसई के आकलन के अनुसार, 2022-23 में नीतियों के कार्यान्वयन और पीएम10 में सुधार के बीच कोई स्पष्ट संबंध नहीं दिखता है। आगरा, दिल्ली, गाजियाबाद, मेरठ और जबलपुर को सड़क धूल के प्रबंधन, जन जागरूकता और पीएम10 सांद्रता में सुधार के लिए रैंकिंग दी गई है। सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि एनसीएपी के उद्देश्य सराहनीय हैं, लेकिन इसका कार्यान्वयन और फंड का उपयोग सन्तुलित नहीं है।

निचले प्रदर्शन वाले शहर

दिल्ली, गाजियाबाद जैसे बड़े शहरों ने पीएम10 को कम करने में खराब प्रदर्शन किया है। नीतिगत उपायों के कार्यान्वयन के लिए स्वच्छ वायु सर्वेक्षण में अच्छा प्रदर्शन करने वाले शहर एनसीएपी के तहत खराब प्रदर्शन कर रहे हैं।

रिपोर्ट की मुख्य बातें

  • एनसीएपी शहरों के लिए 1,616.47 करोड़ रुपये जारी किए गए, जिनमें से 1,421 करोड़ (51 प्रतिशत) उपयोग किए गए।
  • 15वें वित्त आयोग के तहत 149 शहरों को 8,951 करोड़ रुपये जारी किए गए।
  • उद्योगों, वाहनों के धुएं और उत्सर्जन को नियंत्रित करने पर कम राशि खर्च की गई।
  • दिल्ली ने अपने फंड का केवल 29.52 प्रतिशत खर्च किया।
  • अमरावती, गुंटूर और राजमुंदरी जैसे शहरों ने एनसीएपी के तहत सबसे निचला प्रदर्शन किया।
  • धूल नियंत्रण पर 64 प्रतिशत धनराशि खर्च की गई, जबकि दहन स्रोतों से निकलने वाले उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए कम धनराशि खर्च की गई।

सीएसई की रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि एनसीएपी के प्रभावी परिणामों के लिए धन का संतुलित उपयोग आवश्यक है। वर्तमान में, ध्यान और निवेश मुख्य रूप से धूल नियंत्रण पर केंद्रित है, न कि उद्योगों या वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन जैसे स्रोतों पर।

source- दैनिक जागरण

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