लैंसेट ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित एक ताजे अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि उत्तर भारत में 48.4 प्रतिशत बच्चे कमजोर पैदा होते हैं। इस अध्ययन के अनुसार, ऐसे बच्चों के जन्म के 72 घंटे के भीतर मरने की संभावना अधिक होती है। इसके साथ ही, प्रसव के दौरान मरने वाली माताओं का अनुपात भी अधिक पाया गया है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि दुनिया भर में मृत जन्म और नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में कमी आने के बावजूद, यह दर अभी भी चिंताजनक रूप से ऊँची बनी हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इस अध्ययन के लिए 8000 गर्भवती महिलाओं का सर्वेक्षण किया, जिसमें सभी महिलाओं की औसत आयु 23.7 वर्ष थी और मासिक पारिवारिक आय करीब 20 हजार रुपये प्रति माह थी।
मुख्य निष्कर्ष
- प्रजनन क्षमता और जोखिम: जिन महिलाओं की प्रजनन क्षमता कम थी, उनके कमजोर बच्चे होने का जोखिम अधिक पाया गया।
- उच्च मृत्यु दर: 2022 में 45 लाख बच्चों की मृत्यु हुई, जिनमें से 60 फीसदी मौतें भारत समेत कम आय वाले परिवारों की हैं।
- मृत्यु के कारण: प्रसव के दौरान होने वाली मौतों में कोई उल्लेखनीय कमी नहीं आई है, खासकर मध्य और दक्षिण एशिया में शिशु और बाल मृत्यु दर सबसे अधिक है।
- कारण: कमजोर बच्चों के जन्म के तीन मुख्य कारणों में गर्भावस्था के दौरान महिलाओं का बॉडी मास इंडेक्स (BMI) कम होना, अत्यधिक मोटापा, और बैक्टीरिया जनित बीमारियां शामिल हैं।
अनुसंधान की अवधि और क्षेत्र
शोधकर्ताओं ने मई 2015 से अगस्त 2020 के बीच अध्ययन किया। आंकड़ों से पता चला कि 2000 से 2010 के बीच हुए सुधार बरकरार नहीं रह पाए हैं। भारत उन शीर्ष 10 देशों में शामिल है, जहां मातृ, भ्रूण और नवजात मृत्यु दर सबसे ज्यादा है।
अध्ययन के सुझाव
शोधकर्ताओं ने कमजोर बच्चों के जन्म के बढ़ते जोखिम को देखते हुए इस दिशा में अधिक ध्यान देने और सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों में सुधार की सिफारिश की है। उन्होंने कहा है कि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के पोषण और स्वास्थ्य की बेहतर देखभाल आवश्यक है ताकि मातृ और नवजात मृत्यु दर को कम किया जा सके।
यह अध्ययन एक महत्वपूर्ण चेतावनी है कि हमें नवजात शिशु और मातृ स्वास्थ्य के क्षेत्र में अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। कमजोर बच्चों की बढ़ती संख्या और इससे जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं को देखते हुए, स्वास्थ्य नीति निर्माताओं को तत्काल और प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।
source and data – हिंदुस्तान समाचार पत्र