भारत में पेयजल में यूरेनियम के मात्रा: चिंताजनक

saurabh pandey
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भारत के कई हिस्सों में पेयजल में यूरेनियम की मौजूदगी से चिंता की बातें उठी हैं। ज्यादातर मामलों में यह परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (एईआरबी) के निर्धारित मानकों के भीतर है, लेकिन भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के मानक इस संबंध में अधिक सख्त हैं। परमाणु ऊर्जा वैज्ञानिक संजय के. झा, दिनेश के. असवाल और उनके साथियों द्वारा किए गए शोध में कहा गया है कि बीआईएस के मानक हालांकि अधिक सख्त हैं लेकिन भारतीय पर्यावरण में उनका क्रियान्वयन कठिन है और इससे नई पर्यावरणीय समस्याएं पैदा होती हैं।

एक अध्ययन के अनुसार, भारत के 23 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों के 403 जिलों में पेयजल और भूजल के नमूने एकत्र किए गए, जिनमें से 55,554 नमूने शामिल थे। इस अध्ययन के दौरान पाया गया कि पानी में यूरेनियम की मात्रा 0.2 से 4918 माइक्रोग्राम प्रति लीटर तक हो सकती है। इसमें से 97.8% नमूनों में यूरेनियम की मात्रा 60 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से कम पाई गई, जो एईआरबी के मानकों को पूरा करता है। लेकिन 2.2% नमूनों में यह मात्रा इसे पार कर गई, जिससे स्वास्थ्य पर खतरे की संभावना है।

यूरेनियम न केवल इसलिए घातक है क्योंकि यह एक रेडियोधर्मी पदार्थ है, बल्कि इसकी रासायनिक संरचना भी जहरीली है। इससे गुर्दे, महाधमनी, हड्डियों और थायरॉयड हार्मोन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जैसा कि जानवरों पर किए गए अध्ययनों में पुष्टि है। इस समस्या को सुलझाने के लिए अधिक विस्तृत अध्ययन की जरूरत है, जिसमें एईआरबी मानकों के प्रभाव का भी आकलन किया जाए।

मानकों के अलावा, विशेष रूप से कम और मध्यम वर्षा वाले क्षेत्रों में उच्च यूरेनियम स्तरों की उपस्थिति पर ध्यान देने की सिफारिश की गई है, जहां भूजल में इसकी सबसे अधिक मात्रा पाई जाती है।

कहां क्या मानक

एईआरबी मानकों के अनुसार प्रति लीटर पानी में यूरेनियम की मात्रा 60 माइक्रोग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए।

हालांकि, भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने इस मामले में डब्ल्यूएचओ के मानकों को अपनाया है, जिसके अनुसार प्रति लीटर 30 माइक्रोग्राम यूरेनियम ही स्वीकार्य है। अमेरिका और यूरोप में ये मानक हैं। लेकिन कई देशों में 60 माइक्रोग्राम या इससे अधिक की सीमा भी मान्य है।

स्वास्थ्य के लिए खतरनाक

शोध रिपोर्ट के अनुसार, यूरेनियम न केवल इसलिए जानलेवा है क्योंकि यह एक रेडियोधर्मी पदार्थ है, बल्कि इसकी रासायनिक संरचना भी जहरीली है। इससे कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं हो सकती हैं। इससे किडनी, महाधमनी, हड्डियों और थायरॉयड हार्मोन को नुकसान पहुंच सकता है। जानवरों पर किए गए अध्ययनों में इसकी पुष्टि हुई है। शोध में संस्तुति

डब्ल्यूएचओ मानकों के अलावा,

देश को एईआरबी मानकों को भी लागू करना चाहिए क्योंकि बीआईएस मानकों को लागू करने में तकनीकी, सामाजिक-आर्थिक, पर्यावरणीय चुनौतियाँ हैं।

पेयजल में यूरेनियम का मुद्दा आजकल वैज्ञानिकों, नैतिकतावादियों और सामाजिक संगठनों के बीच एक विवादित विषय बन गया है। यूरेनियम, एक प्राकृतिक धातु, जल में असामान्य रूप से मौजूद हो सकता है, विशेष रूप से वे क्षेत्रों में जहां उपजाऊ ग्रंथियाँ होती हैं। यह विशेष रूप से अधिकांश उत्तरी अमेरिकी और यूरोपीय देशों में एक मुद्दा है, क्योंकि वहां पानी के स्रोतों में यूरेनियम के उच्च स्तर पाए जा सकते हैं।

पेयजल में यूरेनियम की पहचान

यूरेनियम का पेयजल में मौजूद होना एक चिंता का विषय है, क्योंकि यह जल संसाधन के स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकता है। यूरेनियम का मौजूद होना आमतौर पर पानी की गहराई में पाया जाता है, जो पानी के निष्कासन, इंजन नाविकी और औद्योगिक उपयोग से आता है। यह धातु न केवल पेयजल के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी एक संकट हो सकता है।

संभावित समस्याएँ और समाधान

यूरेनियम के उच्च स्तरों के कारण सामाजिक और राजनीतिक विवाद उभर आए हैं। इसके अलावा, इसके निर्माण, उपयोग और नियंत्रण के लिए भी वैज्ञानिक और नैतिक निर्णय लेने की आवश्यकता है। सामाजिक रूप से, यह एक मुद्दा है जो प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन के बीच एक संतुलन बनाने की आवश्यकता को उजागर करता है।

यूरेनियम का पेयजल में मौजूद होना एक गंभीर मुद्दा है, जिसका समाधान वैज्ञानिक और सामाजिक समूहों के सहयोग से हो सकता है। इसे समझने, उसके प्रभावों को नियंत्रित करने और इसके प्रबंधन के लिए निरंतर अनुसंधान और समाधान की आवश्यकता है। साथ ही, सार्वजनिक जागरूकता और शिक्षा भी महत्वपूर्ण हैं ताकि लोग पेयजल के स्वास्थ्य और स्थायित्व के प्रति सकारात्मक योगदान कर सकें।

source and data- हिंदुस्तान समाचार पत्र

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