नई दिल्ली। ग्रीनहाउस गैसों में भारी वृद्धि के कारण पृथ्वी का तापमान तेजी से बढ़ रहा है, जिससे जैव विविधता को गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में वर्षा की कमी से वनस्पति में भी बदलाव हो सकता है। यह बदलाव विशेष रूप से भारत के जैव विविधता वाले क्षेत्रों, जैसे पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर भारत, और अंडमान के सदाबहार वनों में देखा जा सकता है, जहां पर्णपाती वनों ने इनकी जगह ले ली है।
मानवजनित गतिविधियों का असर
जर्नल ‘जियोसाइंस फ्रंटियर्स’ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, पिछले 150 वर्षों में ग्रीनहाउस गैसों में हुई वृद्धि के लिए मुख्यतः मानवजनित गतिविधियाँ जिम्मेदार हैं। इनमें सबसे बड़ा योगदान थर्मल पावर प्लांट्स और परिवहन के लिए जीवाश्म ईंधन का जलना है। नासा के अनुसार, ग्रीनहाउस गैसें प्राकृतिक चक्रों को बाधित कर मौसम के पैटर्न में बदलाव ला रही हैं, जिससे जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
वातावरण पर प्रभाव
ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती मात्रा के कारण पृथ्वी का वातावरण अपनी क्षमता से अधिक गर्मी बनाए रखता है, जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है। यह ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है, जो मौसम के पैटर्न में बड़े बदलाव ला रहा है। उदाहरण के लिए, पक्षी प्रजनन स्थलों पर तब पहुंचते हैं जब भोजन के स्रोत कम होते हैं, जिससे उनके अस्तित्व और प्रजनन प्रयासों पर खतरा उत्पन्न होता है।
ग्लोबल वार्मिंग और ग्रीनहाउस प्रभाव
शोधकर्ताओं का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग और ग्रीनहाउस प्रभाव के बीच मुख्य अंतर यह है कि ग्रीनहाउस प्रभाव एक प्राकृतिक घटना है और पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक है। वहीं, ग्लोबल वार्मिंग जीवाश्म ईंधन के दहन से उत्पन्न होती है, जिससे वैश्विक तापमान बढ़ता है। ग्लोबल वार्मिंग का सीधा संबंध ग्रीनहाउस गैसों के अत्यधिक दोहन से है, जो जलवायु परिवर्तन का कारण बनता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि ग्रीनहाउस गैसों के अत्यधिक दोहन को रोकने के लिए पूरी दुनिया को एक साथ आना होगा। इससे न केवल जलवायु परिवर्तन को रोका जा सकेगा, बल्कि जैव विविधता को भी संरक्षित किया जा सकेगा। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ठोस और प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है, ताकि हमारे पर्यावरण और पृथ्वी को सुरक्षित रखा जा सके।
source- अमर उजाला समाचार पत्र