भारतीय कृषि संकट के समय में है। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से भारतीय किसानों को भी बड़ी मुश्किलें उठानी पड़ रही हैं। इस लेख में, हम इस संकट के कारणों को विश्लेषण करेंगे और समाधान की दिशा में चर्चा करेंगे। पिछले दो वर्षों से जलवायु परिवर्तन ने भारतीय किसानों पर कहर बरपाया है। इस वर्ष की अभूतपूर्व गर्मी और ग्लोबल वार्मिंग ने देश में फसल उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित किया है। विकास खुफिया इकाई (DIU) की ‘भारत के सीमांत किसानों की स्थिति 2024’ रिपोर्ट के अनुसार, अत्यधिक गर्मी, सूखा, बेमौसम बारिश और बाढ़ से किसानों की उपज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
समस्याएं:
- गर्मी और सूखा: अत्यधिक तापमान और सूखे के कारण किसानों के लिए फसल उत्पादन में कठिनाई हो रही है। गेहूं, चावल, मक्का, और अन्य फसलों की प्रमुख प्रभावित हो रही हैं। सूखा से बचाव के लिए सिंचाई की अधिक सुविधाएँ और विशेष टेक्नोलॉजी की आवश्यकता है।
- अनियमित वर्षा: बारिश के अनियमित पैटर्न ने फसलों को भी प्रभावित किया है, जिससे उत्पादन में वार्षिक अस्थिरता होती है। अच्छी बीज बुनाई, सही समय पर बरसात में सिंचाई की आवश्यकता है।
- बाढ़ और बर्फानी: कई क्षेत्रों में बाढ़ और बर्फानी के फलस्वरूप किसानों की फसलें नष्ट हो जाती हैं। इससे उनकी आय पर भारी प्रभाव पड़ता है। संयुक्त वार्षिक बाढ़ संयंत्रों के विकास और परिसंचालन की जरूरत है।
- भूमि संकट: अधिक उपयुक्त बुवाई प्रणाली और भूमि संरक्षण तकनीकों की जरूरत है। जल्दी ही खेतों की खासियतों को बनाए रखने के लिए भूमि प्रबंधन पर ध्यान देना चाहिए।
फसलों पर बढ़ते तापमान का प्रभाव
वर्ष 2022 में भारत की गेहूं फसल को अत्यधिक गर्मी के कारण नुकसान पहुंचा, जिससे उत्पादन घटकर 107.7 मिलियन टन रह गया। इससे गेहूं के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाना पड़ा। वर्ष 2023 में भी इसी कारण से गेहूं का उत्पादन लक्ष्य से करीब तीन मिलियन टन कम रहा।
जलवायु परिवर्तन के व्यापक प्रभाव
जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) की रिपोर्ट में गेहूं और मक्का की खेती पर नकारात्मक प्रभावों का उल्लेख किया गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यदि तापमान में वृद्धि होती रही तो फसल उत्पादन में कमी आ सकती है। एक डिग्री तापमान वृद्धि से गेहूं उत्पादन में 3-4 प्रतिशत की कमी हो सकती है, जबकि 4-5 डिग्री तापमान वृद्धि से उत्पादन में 15-20 प्रतिशत की कमी आ सकती है।
फसलों की पैदावार और गुणवत्ता पर प्रभाव
क्लाइमेट ट्रांसपेरेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण धान और मक्का के उत्पादन में 10 से 30 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। इसके साथ ही, उपज की पौष्टिक गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार और पश्चिम बंगाल में चावल, मक्का, कपास, सोयाबीन, मूंगफली और दालों की बुआई में देरी हो रही है। कई उत्तरी राज्यों में धान के खेत बाढ़ के कारण जलमग्न हो जाते हैं, जिससे फसलें बर्बाद हो जाती हैं।
समाधान:
भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान लगभग 19.9 प्रतिशत है और यह क्षेत्र देश के 42.6 प्रतिशत लोगों को रोजगार प्रदान करता है। ऐसे में, राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA) और राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के तहत जलवायु-लचीली कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने की सख्त आवश्यकता है।
- जलवायु-स्मार्ट कृषि प्रौद्योगिकियाँ: जलवायु-स्मार्ट कृषि प्रौद्योगिकियाँ जैसे सिंचाई व्यवस्थाएँ, अनुकूलित बीज और प्रजातियाँ, और गुणवत्ता वाली खाद प्रदान कर सकती हैं। इससे फसलों की प्रतिफलिता बढ़ सकती है और जलवायु संकटों से सम्बंधित संकेतों को पहचाना जा सकता है।
- कृषि प्रौद्योगिकियों का उपयोग: उचित कृषि प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके किसानों को बेहतर फसल व्यवस्थापन, विकसित बीज, और जलवायु संकट से सम्बंधित जानकारी प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।
- सरकारी योजनाएँ: भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही कृषि योजनाओं का लाभ लेकर, किसानों को जलवायु परिवर्तन से बचाव के लिए उपाय अपनाने में मदद मिल सकती है। विशेष रूप से सिंचाई और जल संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए।
- शिक्षा और संचार: ग्रामीण क्षेत्रों में जलवायु संकट से संबंधित शिक्षा और संचार को मजबूत करने के लिए प्रयास करना चाहिए। स्थानीय स्तर पर जलवायु से संबंधित जानकारी पहुंचाने के लिए नेटवर्किंग और विशेषज्ञता को बढ़ावा देना चाहिए।
जलवायु-स्मार्ट कृषि प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता
फसल उत्पादकता और किसानों की आय बढ़ाने के लिए जलवायु-स्मार्ट कृषि (CSA) प्रौद्योगिकियों को अपनाना अनिवार्य है। इन प्रौद्योगिकियों में एक सतत दृष्टिकोण शामिल होना चाहिए। प्रभावी जलवायु-अनुकूल कृषि दृष्टिकोण के साथ, हम भारतीय कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम कर सकते हैं और किसानों की आजीविका को सुरक्षित कर सकते हैं।
जलवायु संकट ने किसानों की चुनौतियों को और बढ़ा दिया है, लेकिन समाधान की दिशा में उठाए गए ठोस कदम उनकी परेशानियों को कम कर सकते हैं। समय की मांग है कि हम जलवायु-स्मार्ट कृषि को अपनाएं और भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार रहें।
source and data – अमर उजाला समाचार पत्र