कश्मीर के ग्लेशियर, जिनकी खूबसूरती का दुनिया में कोई मुकाबला नहीं, पिछले चार दशकों में खामोशी से पिघल रहे हैं। कोलाहाई समेत अधिकांश ग्लेशियर पिछले 40 सालों में 28 प्रतिशत से अधिक सिकुड़ चुके हैं। इस साल भीषण गर्मी ने जम्मू ही नहीं, कश्मीर में भी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। 7 जुलाई को श्रीनगर 35.7 डिग्री सेल्सियस तापमान के साथ 1999 के बाद से 25 सालों में सबसे गर्म रहा। फरवरी के अंत में भी उतनी ठंड नहीं थी जितनी आमतौर पर होती है। कश्मीर में सबसे पहले पौधे जाग उठे। इस चरम मौसम का ग्लेशियर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
भीषण गर्मी ने जम्मू ही नहीं, कश्मीर में भी इस बार रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। 7 जुलाई को श्रीनगर का तापमान 35.7 डिग्री सेल्सियस रहा, जो कि पिछले 25 वर्षों में जुलाई महीने का सबसे उच्चतम तापमान है। फरवरी के अंत में भी ठंडक की कमी देखी गई। इस चरम मौसम का असर कश्मीर के ग्लेशियरों पर भी पड़ा है, जो पूरे क्षेत्र की जल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत हैं।
ग्लेशियरों का सिकुड़ना और इसके परिणाम
कोलाहाई समेत अधिकांश ग्लेशियर, जो पूरी घाटी की प्यास बुझाते हैं और फसलों को उगाने में सक्षम बनाते हैं, पिछले 40 सालों में अपना 28 प्रतिशत से अधिक अस्तित्व खो चुके हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन ने ग्लेशियरों का जीवित रहना मुश्किल कर दिया है। इसके कारण लिद्दर और सिंधु नालों में जलस्तर कम हो गया है, जो कश्मीर की जीवन रेखा झेलम नदी का जलस्रोत है।
बदलते मौसम का कश्मीर पर प्रभाव
कश्मीर न केवल अपनी खूबसूरती बल्कि अपने सुहावने और संतुलित मौसम के लिए भी पूरी दुनिया में मशहूर है। यहाँ सर्दियों में बर्फबारी होती थी, जब तापमान सामान्य से कम रहता था। लोग वसंत ऋतु में अप्रैल में आते हैं, जबकि गर्मी का मौसम जून से अगस्त तक होता है, जिसमें तापमान 28-30 डिग्री सेल्सियस तक रहता है। हालांकि, पिछले कुछ सालों में यह सब गड़बड़ा गया है।
ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
कश्मीर विश्वविद्यालय के जियोइन्फॉर्मेटिक्स विभाग के प्रोफेसर शकील अहमद रामशू ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन ने कश्मीर के मौसम को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए विश्व स्तरीय प्रयास प्रशासन के दावों तक ही सीमित रह गए हैं। ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण औद्योगिक क्रांति है, और घाटी में उद्योग नहीं होने के बावजूद, ग्लोबल वार्मिंग का कश्मीर घाटी के मौसम पर सीधा प्रभाव पड़ा है।
147 ग्लेशियरों की समीक्षा
कश्मीर विश्वविद्यालय के जियोइन्फॉर्मेटिक्स विभाग के प्रोफेसर शकील ने बताया कि 1980 से 2018 तक उपग्रह द्वारा देखे गए 147 ग्लेशियरों की समीक्षा की गई। इस समीक्षा में पाया गया कि 1980 से 2018 तक कोलाहाई ग्लेशियर 28.82 प्रतिशत तक सिकुड़ गया।
कश्मीर के ग्लेशियरों का सिकुड़ना एक गंभीर पर्यावरणीय संकट है, जो पूरे क्षेत्र की जल आपूर्ति और पारिस्थितिकी पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि इन प्राकृतिक धरोहरों को बचाया जा सके। पर्यावरण संरक्षण के प्रति हमारी जिम्मेदारी को समझते हुए हमें त्वरित और ठोस कदम उठाने होंगे।
source and data – dainik jagran