1960 के दशक से खाद्यान्न की कमी और अनाज के आयात पर निर्भर रहने वाला देश भारत आज वैश्विक कृषि महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। इसके बावजूद भारतीय कृषि और हमारे किसान कई समस्याओं और चुनौतियों का सामना करने को मजबूर हैं। इन्हीं समस्याओं में से एक है देश के खेतों या मिट्टी को प्रभावित करने वाला नमक।
खेतों में नमक का संपर्क उत्पादकता को प्रभावित करने वाले सबसे गंभीर पर्यावरणीय कारकों में से एक है। अधिकांश फसल पौधे मिट्टी में नमक के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं और इससे प्रभावित भूमि का क्षेत्रफल लगातार बढ़ रहा है। अकेले उत्तर प्रदेश में 13.70 लाख हेक्टेयर जबकि गुजरात में 22.30 लाख हेक्टेयर भूमि नमक से प्रभावित है। जाहिर है, इसका खामियाजा वहां के किसानों को भुगतना पड़ रहा है। पर्याप्त खाद, पानी और अच्छे बीज का इस्तेमाल करने के बाद भी खेती की लागत निकालना मुश्किल हो गया है।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय का समाधान
ऐसे में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने नई राह दिखाई है। वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रो. आरएन खरवार के नेतृत्व में किए गए अध्ययन में पता चला है कि विशेष फंगस का उपयोग करके उत्पादन में 70 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है।
एस्परगिलस मेडियस और क्लेडोस्पोरियम पैराहेलोटोलरेंट फंगस
प्रो. खरवार और उनकी टीम ने एस्परगिलस मेडियस और क्लेडोस्पोरियम पैराहेलोटोलरेंट नामक फंगस का उपयोग करके यह पाया कि नमक प्रभावित खेत स्थिर हो जाते हैं और पैदावार में 70 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। इससे फसलों की गुणवत्ता में भी सुधार आता है। दोनों फंगस नमक सहनशील गेहूं से निकाले गए हैं, हालांकि ये बीज, मिट्टी, पौधों और नमक प्रभावित मिट्टी में भी पाए जाते हैं।
लवणता का नकारात्मक प्रभाव
इस अध्ययन में शामिल शोधकर्ता प्रियंका ने कहा कि लवणता गेहूं की वृद्धि और उपज पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। मानव जनसंख्या में निरंतर वृद्धि ने वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर दबाव बढ़ा दिया है। 2050 तक दुनिया की खाद्य आपूर्ति में 70 प्रतिशत की वृद्धि की आवश्यकता है। अनाजों में गेहूं को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि 36 प्रतिशत आबादी इस पर निर्भर है। गेहूं 20 प्रतिशत कैलोरी और 55 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट प्रदान करता है।
प्रारंभिक अध्ययन और परिणाम
गेहूं के बीजों पर प्रारंभिक अध्ययन पूरा हो चुका है। दोनों कवक नमक से सुरक्षा प्रदान करने में प्रभावी साबित हुए हैं। जब बीजों को कवक के साथ मिलाकर बोया जाता है, तो उपज बेहतर होती है। यह प्रयोग नवंबर से फरवरी के बीच एक ग्लास हाउस चैंबर में हुआ। आठ समूह बनाए गए। गेहूं के बीजों को एंडोफाइट बीजाणुओं में भिगोया गया, फिर हवा में सुखाया गया।
फफूंद लेपित बीज और प्रयोग के परिणाम
फफूंद लेपित बीजों को छिद्रित गमले में बोया गया। एक सप्ताह बाद सोडियम क्लोराइड से उपचार किया गया। पौधों को सप्ताह में दो बार नियमित रूप से सिंचाई की गई। यह अध्ययन एल्सेवियर की पत्रिका माइक्रोबायोलॉजिकल रिसर्च द्वारा प्रकाशित किया गया है।
भारतीय कृषि में नमक प्रभावित भूमि की समस्या को हल करने के लिए काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का यह प्रयास एक महत्वपूर्ण कदम है। अगर इस पद्धति को व्यापक स्तर पर अपनाया जाए, तो यह भारतीय कृषि को एक नई दिशा दे सकता है और किसानों के लिए वरदान साबित हो सकता है।
भविष्य की दिशा
यह अध्ययन भारतीय कृषि में एक नई क्रांति का संकेत है। विशेष फंगस के उपयोग से नमक प्रभावित भूमि की समस्या का समाधान मिलने की उम्मीद है। इससे न केवल उत्पादन में वृद्धि होगी, बल्कि किसानों की आय भी बढ़ेगी।
source and data – दैनिक जागरण