जल संरक्षण: सीवरेज के उपचारित पानी से भूजल स्तर में छह मीटर की वृद्धि

saurabh pandey
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जल संरक्षण की दिशा में दिल्ली में सीवरेज उपचार की यह सकारात्मक तस्वीर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की ‘बैक फ्रॉम द ब्रिक’ रिपोर्ट से सामने आई है। भूजल स्तर को बढ़ाने में पानी की अहम भूमिका निभाई जा रही है। सीएसई की रिपोर्ट के अनुसार, उपचारित पानी से बनाए गए जलाशयों में भूजल स्तर में तीन से छह मीटर की वृद्धि देखी गई है। पप्पनकलां में स्थापित जलाशय को विशेष रूप से अच्छे उदाहरण के रूप में रिपोर्ट में शामिल किया गया है।

दिल्ली में सीवरेज उपचार और जलाशय पुनरोद्धार की यह पहल न केवल भूजल स्तर को बढ़ाने में महत्वपूर्ण साबित हो रही है, बल्कि इससे पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में भी मदद मिल रही है। यह मॉडल अन्य शहरों और राज्यों के लिए भी एक उदाहरण प्रस्तुत करता है, जिससे वे भी अपने भूजल स्तर को सुधारने और जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

जलाशय पुनरोद्धार योजनाएं

सीएसई ने ‘बैक फ्रॉम द ब्रिक’ रिपोर्ट में देश भर में राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही जलाशय पुनरोद्धार योजनाओं के सबसे सफल उदाहरणों को शामिल किया है। इसमें ‘सिटी ऑफ लेक्स’ के नाम से दिल्ली में शुरू किए गए जलाशयों के कुछ सफल उदाहरणों को भी लिया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, पप्पनकलां में उपचारित जल से दो जलाशय तैयार किए गए हैं, जिनसे भूजल स्तर में छह मीटर तक की वृद्धि हुई है।

पप्पनकलां जलाशय: एक सफल उदाहरण

पप्पनकलां में स्थापित दो जलाशय, जिनमें से एक सात एकड़ और दूसरा चार एकड़ में स्थित है, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट से उपचारित जल इन दोनों जलाशयों में छोड़ा जाता है। इन दोनों जलाशयों की वजह से भूजल स्तर को छह मीटर बढ़ाने में सफलता मिली है। यह सुधार दिल्ली के तेजी से गिरते भूमिगत जल स्तर को स्थिर करने में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ है।

सीएसई की विशेषज्ञ सुष्मिता सेनगुप्ता ने बताया कि उपचारित जल ने दिल्ली में अच्छा काम किया है। तेजी से गिरते भूमिगत जल स्तर को सुधारने का नया रास्ता सामने आया है। इस पद्धति को अन्य स्थानों पर भी अपनाया जा सकता है।

जलाशयों के फायदे

  • मिट्टी में नमी की मात्रा बढ़ती है: जलाशयों के कारण मिट्टी में नमी की मात्रा बढ़ती है, जिससे आसपास के क्षेत्र में हरियाली बढ़ती है।
  • धूल और प्रदूषण कम होता है: मिट्टी में नमी होने से धूल कम उड़ती है और प्रदूषण कम होता है।
  • तापमान कम रहता है: नमी बढ़ने से आसपास का तापमान कम रहता है।
  • पक्षियों की संख्या बढ़ती है: जलाशयों के कारण पानी के पास रहने वाले पक्षियों की संख्या भी बढ़ जाती है।

दिल्ली में जलाशयों की स्थिति

दिल्ली में 20 स्थानों पर 37 एसटीपी (सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट) हैं, जिनकी सीवरेज शोधन क्षमता 667 एमजीडी (मिलियन गैलन प्रति दिन) है। इनमें से 565 एमजीडी तक शोधन कार्य चल रहा है, लेकिन मात्र 89 एमजीडी का ही पुनः उपयोग हो रहा है। नजफगढ़ में तैयार एक जलाशय से तीन मीटर तथा द्वारका में तैयार अन्य तीन जलाशयों से चार मीटर भूजल स्तर बढ़ाने में सफलता मिली है।

हाल ही में एक जलाशय तैयार किया गया है, लेकिन भूजल स्तर पर इसके प्रभाव का आंकड़ा अभी तैयार नहीं हुआ है। जल बोर्ड ने पप्पनकलां के सीवरेज शोधन संयंत्र (एसटीपी) में दो जलाशय बनाए हैं। जबकि नजफगढ़ एसटीपी और द्वारका एसटीपी में एक-एक जलाशय बनाया गया है। पहले एसटीपी से उपचारित पानी को यूं ही छोड़ दिया जाता था, लेकिन अब इसे जलाशयों में संग्रहित किया जाता है। जब पप्पनकलां के जलाशयों में अतिरिक्त पानी होता है, तो अतिरिक्त पानी नजफगढ़ और द्वारका के जलाशयों में चला जाता है।

देशभर में 24 लाख से ज्यादा जलाशय

रिपोर्ट के मुताबिक, देश में कुल 24 लाख 24 हजार 540 जलाशय मौजूद हैं। अलग-अलग जगहों पर इन्हें तालाब, पोखर, जलाशय, झील, पोखर या अन्य नामों से पुकारा जाता है। देश के 97 फीसदी जलाशय ग्रामीण इलाकों में हैं।

जल संरक्षण की इस दिशा में किए गए प्रयास भविष्य में भी हमारे जल संसाधनों को सुरक्षित रखने और उन्हें संरक्षित करने में मददगार साबित होंगे।

Source – दैनिक जागरण

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