मौसम के बदलाव के कारण पेड़ अपना स्थान बदल रहे हैं। ठंडे और आर्द्र क्षेत्रों में बड़ी संख्या में पेड़ों की प्रजातियां उग रही हैं। स्पेन की अल्काला यूनिवर्सिटी और बर्मिंघम यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह दावा किया है। उनके मुताबिक, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में जलवायु परिवर्तन के कारण ठंडे और आर्द्र क्षेत्रों में पेड़ों की प्रजातियां घनी होने लगी हैं। यह अध्ययन नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज की कार्यवाही में प्रकाशित हुआ है।
जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप पेड़ों की प्रजातियों का स्थान परिवर्तन एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दा बन गया है। इस परिवर्तन का हमारे पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है, जिससे न केवल वनस्पतियों और जीवों की विविधता प्रभावित होती है, बल्कि संपूर्ण मानव जीवन भी प्रभावित होता है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण तापमान में वृद्धि, वर्षा के पैटर्न में बदलाव, और सूखे की आवृत्ति में वृद्धि जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इन प्रभावों के कारण, कई पेड़ प्रजातियां अपने प्राकृतिक स्थानों से पलायन करने के लिए मजबूर हो रही हैं। जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, कुछ पेड़ प्रजातियां ठंडे क्षेत्रों की ओर स्थानांतरित हो रही हैं, जबकि अन्य प्रजातियां गर्म क्षेत्रों में फैल रही हैं। यह स्थानांतरण प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा कर सकता है।
20 लाख से ज्यादा पेड़ों का विश्लेषण
शोधकर्ताओं ने यूरोप और अमेरिका में फैले 20 लाख से ज्यादा पेड़ों के आंकड़ों का विश्लेषण किया। इन 20 लाख में पेड़ों की 73 प्रजातियां शामिल हैं। शोध के अनुसार, महाद्वीपीय पैमाने के समशीतोष्ण वनों में प्रत्येक प्रजाति के वृक्षों की संख्या में भिन्नता होती है।
पारिस्थितिकी तंत्र पर इसका प्रभाव कई स्तरों पर देखा जा सकता है। सबसे पहले, पेड़ों की प्रजातियों के स्थान परिवर्तन से वनस्पतियों की विविधता पर प्रभाव पड़ता है। कुछ पेड़ प्रजातियां अपने नए वातावरण में अनुकूलन करने में सक्षम हो सकती हैं, जबकि अन्य प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर पहुंच सकती हैं। इससे वन्यजीवों की आवास स्थिति प्रभावित होती है, जो इन पेड़ों पर निर्भर होती हैं।
दूसरे, पेड़ों की प्रजातियों के स्थान परिवर्तन से मिट्टी की गुणवत्ता और जल धारण क्षमता पर प्रभाव पड़ सकता है। कुछ पेड़ प्रजातियां मिट्टी में नाइट्रोजन और अन्य पोषक तत्वों की मात्रा को बनाए रखने में मदद करती हैं। जब ये पेड़ प्रजातियां स्थानांतरित होती हैं, तो नई प्रजातियां मिट्टी की संरचना को बदल सकती हैं, जिससे कृषि और अन्य वनस्पति प्रजातियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
तीसरे, पेड़ों की प्रजातियों के स्थान परिवर्तन से जलवायु परिवर्तन के दुष्चक्र को बढ़ावा मिल सकता है। पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जब पेड़ प्रजातियां स्थानांतरित होती हैं या विलुप्त होती हैं, तो वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ सकती है, जिससे जलवायु परिवर्तन और अधिक बढ़ सकता है।
पेड़ कैसे स्थान बदल रहे हैं
बर्मिंघम और लुड विश्वविद्यालयों के सह-लेखकों के मुताबिक, मौसम इन वृक्ष प्रजातियों को प्रभावित करता है। कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं:
- एबीस बाल्सामिया: यह पूर्वी और मध्य कनाडा और उत्तरपूर्वी अमेरिका के अधिकांश हिस्सों में पाया जाने वाला उत्तरी अमेरिकी देवदार का पेड़ है।
- एबीस कॉनकोलर: जिसे आमतौर पर सफेद देवदार या कॉनकोलर देवदार कहा जाता है, मुख्य रूप से पश्चिमी अमेरिका में पहाड़ी ढलानों पर पाया जाता है।
- एसर रूब्रम: इसे लाल मेपल या सॉफ्ट मेपल के नाम से भी जाना जाता है। यह पूर्वी और मध्य उत्तरी अमेरिका के सबसे आम और पर्णपाती पेड़ों में से एक है।
- पिसिया ग्लौका: उत्तरी अमेरिका के समशीतोष्ण और बोरियल जंगलों में पाया जाता है।
- त्सुगा कैनाडेंसिस: कनाडा के फ्रेंच भाषी क्षेत्रों में इसे पाउच डू कनाडा के नाम से भी जाना जाता है। यह एक शंकुधारी पेड़ है और इसे पेंसिल्वेनिया के राज्य वृक्ष का दर्जा प्राप्त है।
पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली में चुनौती
डॉ. थॉमस पुघ ने कहा, “यूरोप में पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने के लिए वर्तमान में उपयोग की जाने वाली कुछ वृक्ष प्रजातियाँ इन क्षेत्रों के लिए लंबे समय तक उपयुक्त नहीं हो सकती हैं।” उन्होंने यह भी बताया कि इसके लिए उपयुक्त भूमि खोजने और उन्हें पुनर्विकसित करने के लिए एक कार्यक्रम चलाया जा रहा है। यह अध्ययन 12 देशों के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण पेड़ों की प्रजातियां अपने स्थान बदल रही हैं और यह परिवर्तन हमारे पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। इससे निपटने के लिए वैज्ञानिक शोध और पुनर्विकास कार्यक्रम आवश्यक हैं।
source and data – हिंदुस्तान समाचार पत्र