जलवायु परिवर्तन की विभीषिका में विश्व

saurabh pandey
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आज के युग में, जब विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने नए आयाम छुए हैं, तब भी मानवता के सामने जलवायु परिवर्तन एक गंभीर चुनौती के रूप में खड़ी है। यह समस्या न केवल पर्यावरणीय संकट है, बल्कि इससे सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी जुड़ी हुई हैं। पिछले कुछ समय से जलवायु परिवर्तन का असर जिस तीव्रता से दिखने लगा है, उसे देखते हुए मौसम में बदलाव की हर आहट एक अलग तरह का डर भी पैदा करती है। बाढ़ के कहर से जूझ रहे पूर्वोत्तर राज्य, गुजरात में आया तूफान या उत्तर भारत की भीषण गर्मी—इन सभी घटनाओं ने स्पष्ट कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन अब एक गंभीर समस्या बन चुकी है।

वैश्विक तापमान में वृद्धि

पिछले कुछ दशकों में वैश्विक तापमान में निरंतर वृद्धि हो रही है। जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन है, जो औद्योगिक क्रांति के बाद से बढ़ता जा रहा है। ये गैसें वातावरण में जमा होकर पृथ्वी के तापमान को बढ़ा रही हैं। इसके परिणामस्वरूप, ध्रुवीय बर्फ पिघल रही है, समुद्र स्तर बढ़ रहा है और अत्यधिक मौसम की घटनाएं जैसे हीटवेव, सूखा, बाढ़ और तूफान आम हो गए हैं।

प्राकृतिक संसाधनों पर प्रभाव

जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर भारी दबाव पड़ रहा है। जलस्त्रोत सूख रहे हैं, जिससे कृषि और पेयजल की समस्या बढ़ रही है। कृषि उत्पादन में कमी के कारण खाद्य सुरक्षा को खतरा है। इसके अलावा, जंगलों की कटाई और जैव विविधता में कमी भी जलवायु परिवर्तन की गंभीर समस्याओं में शामिल हैं।

मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव

जलवायु परिवर्तन का मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। अत्यधिक गर्मी के कारण हीट स्ट्रोक और अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के कारण वायु गुणवत्ता में गिरावट आ रही है, जिससे श्वसन संबंधी बीमारियों की घटनाएं बढ़ रही हैं। मलेरिया, डेंगू और अन्य वेक्टर-बोर्न बीमारियों का प्रसार भी जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रहा है।

आर्थिक और सामाजिक प्रभाव

जलवायु परिवर्तन का आर्थिक और सामाजिक प्रभाव भी व्यापक है। प्राकृतिक आपदाओं के कारण आर्थिक नुकसान बढ़ रहा है, जिससे देशों की आर्थिक स्थिति कमजोर हो रही है। गरीबी और बेरोजगारी की समस्या भी बढ़ रही है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के कारण प्रवासन की समस्या भी उभर रही है, जिससे सामाजिक तनाव बढ़ रहा है।

मौसमी असामान्यता के हालात

उत्तर भारत ने पिछले कुछ महीनों से भीषण गर्मी की मार झेली है, और अब मौसम की लुका-छिपी से राहत की सांस ले रहा है। वहीं, देश के अन्य हिस्सों जैसे पूर्वोत्तर, उत्तराखंड और गुजरात में मौसम की असामान्यता चिंता का विषय बनी हुई है। असम और अरुणाचल प्रदेश में पिछले एक महीने से बाढ़ के कारण लाखों लोग बेघर हो गए हैं। बद्रीनाथ धाम में लगातार हो रही बारिश से तीर्थयात्री और स्थानीय लोग बेहाल हैं, जबकि गुजरात में तूफान के कारण जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है।

जलवायु परिवर्तन के खतरनाक प्रभाव

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव जिस तीव्रता से देखने को मिल रहे हैं, वह भयावह है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष मध्य जून तक लू के कारण करीब 143 लोगों की मौत हो गई और करीब 42 हजार लोग लू की चपेट में आ गए। पिछले वर्ष, चरम मौसमी घटनाओं के परिणामस्वरूप 3,287 मौतें हुईं, 22 लाख हेक्टेयर में फसलें बर्बाद हुईं, 86,432 घर क्षतिग्रस्त हुए और 1,25,000 पशुओं की मौत हुई।

औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि

वर्ष 1850 से अब तक पृथ्वी पर औसत वैश्विक तापमान में करीब 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है, जिसका मुख्य कारण मानवीय गतिविधियों के कारण ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ना है। इसके परिणामस्वरूप चरम मौसमी घटनाएं अधिक सामान्य होती जा रही हैं। पिछले जून में सामान्य से 11 प्रतिशत कम बारिश हुई थी, जो 2001 के बाद सबसे कम बारिश वाला महीना था। मौसम विभाग का कहना है कि जुलाई में देश के लगभग सभी हिस्सों में सामान्य से अधिक बारिश होने की संभावना है।

जलवायु परिवर्तन के प्रति उदासीनता

मौसम की असामान्यता चिंताजनक है, लेकिन इसे लेकर बरती जा रही लापरवाही भी उतनी ही आश्चर्यजनक है। 1999 से 2020 के बीच संसद में पूछे गए कुल सवालों में से केवल लगभग 0.3 प्रतिशत ही जलवायु से संबंधित थे। हाल के लोकसभा चुनावों में इस मुद्दे को लेकर शायद ही कोई आवाज उठी हो, मानो यह कोई मुद्दा ही न हो।

समाधान की दिशा में

मौसमी घटनाओं की तीव्रता से यह स्पष्ट हो जाता है कि जलवायु परिवर्तन अब भविष्य की समस्या नहीं रह गई है। हमें इसकी गंभीरता को समझना होगा और इसे प्राथमिकता बनाना होगा। जलवायु परिवर्तन की व्यापक चुनौती को हल करने के लिए हमें सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। इस दिशा में पहला कदम जलवायु परिवर्तन को एक महत्वपूर्ण मुद्दा मानना और इसे हल करने के लिए ठोस कदम उठाना होगा।

जलवायु परिवर्तन की विभीषिका से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का उपयोग बढ़ाना होगा। ऊर्जा की बचत और नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग प्रोत्साहित करना होगा। इसके साथ ही, जंगलों की रक्षा और वृक्षारोपण को बढ़ावा देना चाहिए।

विकसित और विकासशील देशों को मिलकर जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करना होगा। इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और वित्तीय समर्थन महत्वपूर्ण हैं। संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (SDGs) और पेरिस समझौता जैसी पहलें इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।

जलवायु परिवर्तन की विभीषिका से निपटने के लिए हमें जागरूकता, सहयोग और दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ना होगा। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ पर्यावरण सुनिश्चित करें। जलवायु परिवर्तन की चुनौती को अवसर में बदलना ही हमारी सफलता का मापक होगा।

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