मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने मंगलवार को कड़कड़डूमा, शास्त्री पार्क और रोहिणी में कोर्ट भवनों की आधारशिला रखते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन को अब और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि हमें अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में हरित जीवनशैली को शामिल करने की जरूरत है, जिसमें कार्बन उत्सर्जन को कम करना भी शामिल है।
कड़कड़डूमा, शास्त्री पार्क और रोहिणी में कोर्ट भवनों की आधारशिला रखते हुए सीजेआई ने कहा- रोजमर्रा की जिंदगी में हरित जीवनशैली को शामिल करने की जरूरत
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“इस साल दिल्ली में सबसे गर्म मौसम रहा और एक ही दिन में दो बार लू चली और उसके बाद रिकॉर्ड तोड़ बारिश हुई। इसलिए हमारे बुनियादी ढांचे में वह वास्तविकता होनी चाहिए जिसमें हम रह रहे हैं। जलवायु परिवर्तन को अब और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।”
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उन्होंने कहा कि एक महत्वपूर्ण कदम यह है कि हम अपने दैनिक जीवन में हरित जीवनशैली को शामिल करें, जिससे कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी। स्टीफन हॉकिंग का जिक्र करते हुए सीजेआई ने कहा, “जब महान भौतिक विज्ञानी और ब्रह्मांड विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग भारत आए थे, तो उन्होंने भारतीय स्मारकों को देखने की इच्छा जताई थी। चार ऐतिहासिक स्मारकों पर अस्थायी लकड़ी के रैंप लगाए गए थे, ताकि वे आसानी से आ-जा सकें। ऐसा माना जाता है कि अगर आप कुतुब मीनार को छूते हैं और कोई इच्छा करते हैं, तो वह पूरी हो जाती है। जब स्टीफन हॉकिंग से पूछा गया कि कुतुब मीनार के लिए उनकी क्या इच्छा है, तो उन्होंने कहा, ‘मैं चाहता हूं कि जब मैं यहां से जाऊं, तो ये रैंप बने रहें।’ इसमें उत्सर्जन कम करना शामिल है।”
सीजेआई ने कहा, “मुझे यह जानकर खुशी हुई कि नई इमारतें हीट आइलैंड शमन और पर्यावरणीय पदचिह्न को कम करने पर ध्यान केंद्रित करेंगी। उन्होंने कहा कि सभी इमारतों की तरह कोर्ट परिसर भी ईंटों और कंक्रीट से नहीं बने हैं, बल्कि वे उम्मीद से बने हैं। न्यायालय न्याय और कानून के शासन के गुणों को समझने के लिए बनाए गए हैं।
हमारे सामने जो भी मामला दायर किया जाता है, वह न्याय की उम्मीद के साथ होता है। जब हम अपने न्यायाधीशों, वकीलों और वादियों की सुरक्षा, पहुंच और सुविधा में निवेश करते हैं तो हम न केवल एक कुशल प्रणाली बनाते हैं बल्कि हम एक न्यायपूर्ण और समावेशी प्रणाली भी बनाते हैं। हमारी संवैधानिक प्रणाली न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के गुणों पर आधारित है।”

सीजेआई ने कहा कि हमारी कानूनी और संवैधानिक प्रणाली मूल रूप से न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के गुणों पर आधारित है और अदालतें इन मौलिक गुणों की संरक्षक हैं। उन्होंने कहा कि एक अदालत की नींव संरचनात्मक और दार्शनिक दोनों ही दृष्टि से मजबूत होनी चाहिए। इसे संविधान के अलावा किसी और की सेवा नहीं करनी चाहिए। केवल वादीगण को ही सेवा दी जानी चाहिए। हमारी अदालतें न केवल संप्रभु सत्ता की आंखें हैं, बल्कि आवश्यक सार्वजनिक सेवाएं भी प्रदान करती हैं।
Source- अमर उजाला ब्यूरो