उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में बढ़ते वाहनों के दबाव और पर्यटकों की भारी भीड़ के कारण वायु गुणवत्ता का स्तर तेजी से खराब हो रहा है। विशेषकर नैनीताल की हवा सबसे प्रदूषित पाई गई है, जहां पिछले एक साल में पीएम 10 का स्तर 15 प्रतिशत से अधिक बढ़ गया है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट बताती है कि नैनीताल में वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार पीएम 10 का स्तर 76.77 माइक्रोग्राम प्रति क्यूब तक पहुँच गया है, जो सामान्य से 36.77 अधिक है। वाहनों की बढ़ती आवाजाही इसका मुख्य कारण है।
विभिन्न जिलों में पीएम 10 के स्तर:
पीएम 10 स्तर (माइक्रोग्राम प्रति क्यूब)
स्थिति का विश्लेषण
नैनीताल के बाद, बागेश्वर की हवा सबसे प्रदूषित पाई गई है, जबकि वहां पर्यटन गतिविधियां सीमित हैं। इसका एक कारण खनन व्यवसाय हो सकता है। वहीं, मैदानी इलाकों में वायु प्रदूषण सबसे अधिक देहरादून में पाया गया, जबकि सबसे कम काशीपुर में है।
विशेषज्ञों की राय
डॉ. डीके जोशी, क्षेत्रीय अधिकारी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, हल्द्वानी के अनुसार, नैनीताल में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण वाहनों की बढ़ती आवाजाही है। देहरादून में आईएसबीटी के पास पीएम 10 का स्तर 223.91 पाया गया, जबकि काशीपुर में 115.19 दर्ज किया गया।
समाधान और सुझाव
वायु प्रदूषण की इस गंभीर स्थिति को सुधारने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं:
वाहनों की संख्या नियंत्रित करना: पहाड़ी इलाकों में वाहनों की संख्या को सीमित करने के लिए ट्रैफिक प्रबंधन और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
पर्यटकों की संख्या पर नियंत्रण: पर्यटकों की संख्या पर नियंत्रण रखने के लिए उचित नीतियाँ बनानी चाहिए, ताकि पर्यावरण पर अत्यधिक दबाव न पड़े।
खनन गतिविधियों पर निगरानी: खनन व्यवसाय को नियंत्रित और निगरानी में रखा जाना चाहिए ताकि वायु प्रदूषण कम हो सके।
सार्वजनिक जागरूकता: लोगों को वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करना और पर्यावरण संरक्षण के उपायों को अपनाने के लिए प्रेरित करना।
उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों की वायु गुणवत्ता को सुधारने के लिए यह जरूरी है कि सरकार और जनता मिलकर इन उपायों को अपनाएं। वायु प्रदूषण को कम करने के लिए सामूहिक प्रयास ही सबसे कारगर साबित होंगे।
सौरभ पाण्डेय
prakritiwad.com
source- हिन्दुस्तान समाचार पत्र