भारतीय वैज्ञानिकों ने 42 साल की सैटेलाइट तस्वीरों का अध्ययन कर क्षेत्रीय स्तर पर जलवायु में हो रहे बदलावों का रहस्य उजागर किया है। अध्ययन से पता चला है कि देश में कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे जैसे हालात मानसून चक्र के बिगड़ने का नतीजा हैं। वैज्ञानिकों ने इसके लिए आर्कटिक में लगातार पिघल रही समुद्री बर्फ को जिम्मेदार ठहराया है।
मुख्य बिंदु:
- 42 साल की सैटेलाइट तस्वीरों के अध्ययन से खुलासा
- आर्कटिक बर्फ पिघलने से भारत की जलवायु पर असर
- हिमालय में बर्फबारी में कमी
- मानसून चक्र के बिगड़ने का नतीजा बाढ़ और सूखा
वैज्ञानिकों ने भारत की जलवायु और आर्कटिक समुद्री बर्फ के बीच संबंधों की जांच की। इसमें पता चला कि लगातार पिघलती बर्फ का सीधा असर भारत की जलवायु पर पड़ रहा है। अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने बर्फ पिघलने के अलग-अलग कारणों को किसी न किसी तरह से प्रभावित किया है।
बर्फ पिघलने से पश्चिमी भारत में बारिश में बढ़ोतरी हुई है, जबकि वरंगियन कारा सागर और पूर्वोत्तर भारत में गंगा के मैदानों में बारिश में कमी आई है। एल्सेवियर मेडिकल जर्नल के विशेष अंक में प्रकाशित इस अध्ययन में आर्कटिक समुद्री बर्फ सांद्रता (एसआईसी) और भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा (आईएसएमआर) के बीच संबंधों को समझना क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन का विश्लेषण करने के लिए महत्वपूर्ण बताया गया है।
इसका श्रेय भूमि-समुद्र के तापमान में परिवर्तन, पश्चिमी हिंद महासागर के गर्म होने और एशियाई जेट स्ट्रीम में परिवर्तन को दिया जाता है। यह अध्ययन गोवा के राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र और मैंगलोर विश्वविद्यालय के समुद्री भूविज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है, जिसे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय से अनुमति मिली है।
हिमालय में बर्फ की स्थिति
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने बताया कि हिमालय में सुत्री ढाका ग्लेशियर पर 6 जून, 2023 और 8 जून, 2024 को बर्फ की गहराई मापी गई। यह पता चला कि इस साल 85 सेमी बर्फ कम हुई है। 6 जून 2023 को यहां 145 सेमी बर्फबारी हुई थी, लेकिन 8 जून 2024 को केवल 60 सेमी बर्फबारी हुई।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि भविष्य के मॉडल विकसित करने से हम भारत के मानसून के बारे में बेहतर भविष्यवाणियां कर सकते हैं। इससे हमारी समझ में काफी सुधार हो सकता है।
Source- अमर उजाला समाचार पत्र / परीक्षित निर्भय
सौरभ पाण्डेय
Prakritiwad.com