चंबल नदी में डॉल्फिन पर सर्वे: कम पानी और गर्मी में कैसे करती हैं जीवनयापन
चंबल नदी में डॉल्फिन भीषण गर्मी और कम पानी के बीच किस हाल में रहती हैं, इनकी वास्तविक संख्या कितनी है, यह पता लगाने के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) देहरादून पहली बार सर्वे करवा रहा है। अगर कम जलस्तर व गर्मी के कारण डॉल्फिन के लिए किसी खतरे का संकेत मिला, तो उनकी संरक्षण के लिए दूसरी नदियों में उनका ठिकाना बनाने पर भी डब्ल्यूआईआई और भारत सरकार विचार कर सकती है।

गंगा में पाई जाने वाली प्रजाति डॉल्फिन राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य में भी शामिल है। चंबल नदी के एक हिस्से में भी मिलती है। अब तक इनका गगन सर्दियों (फरवरी) में होता रहा है। चंबल घड़ियाल अभयारण्य, मुरैना के डीएफओ अशोक साहू ने बताया कि विशेषज्ञों की टीम यह देख रही है कि भीषण गर्मी में जब चंबल का जलस्तर सबसे कम होता है, तो डॉल्फिन का व्यवहार, शिकार करने की शैली और रहना कैसा होता है।

डॉल्फिन संरक्षण के लिए केंद्र सरकार ने चंबल नदी को ‘प्रोजेक्ट डॉल्फिन’ में भी शामिल किया है। पिछले साल केंद्र सरकार की नदियों के घटते जलस्तर पर रिपोर्ट मिली थी, जिसमें चंबल नदी भी शामिल है। चंबल नदी में डॉल्फिन के प्राकृतिक ठिकाने मुरैना से लेकर यूपी के पंचनदा घाट यानी 220 किलोमीटर क्षेत्र में हैं।

फरवरी में हुई जलजीव गिनती में इस क्षेत्र में 111 डॉल्फिन गिनी गई थीं। पिछले साल के मुकाबले इनकी संख्या में 15 की बढ़ोतरी हुई। भारतीय वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञों का मानना है कि चंबल नदी में 125 डॉल्फिन के रहने के लिए पर्याप्त स्थान है। वर्ष 2020 में चंबल नदी में 68 डॉल्फिन थी, जो चार साल में लगभग दुगनी हो गई हैं।
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