मरुस्थलीकरण : घटती उपजाऊ भूमि से खाद्य सुरक्षा और आजीविका  पर बढ़ता  खतरा।  

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हर साल लगभग 12  मिलियन हेक्टेयर लैंड एरिया रेगिस्तान में परिवर्तित हो रहा है जोकि लाखो लोगो के खाद्य सुरक्षा और जिंदगी को प्रभावित कर रहा है इसलिए इस साल विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर इस पर्यावरणीय मुद्दे को केंद्र बिंदु मे रख गया।

UNCCD यानि यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन  टू कॉम्बैट डेजर्टीफिकेशन के अनुसार साल 2015 से 2019 के बीच  लगभग 100 मिलियन उपजाऊ भूमिगत क्षेत्र रेगिस्तान में परिवर्तित हो चूका है जोकि एक बहुत ही गहरे संकट की तरफ इशारा कर रहा है।  बढ़ती मरुस्थलीय  भूमि उपजाऊ मिट्टी को कम रही है जिससे खाद्य सुरक्षा पर खतरा बढ़ रहा है , बढ़ते  खाद्य असुरक्षा के कारण लोग  पलायन करके दूसरे जगह जाने को मजबूर है क्योकि जहा पे वो है वहा से उनके खाद्य सम्बन्धी जरूरते पूरी नहीं हो पा रही। दुनिया भर में बढ़ती रेतभूमि का मुख्य कारण वनो की कटाई ,खेती करते समय प्रयोग की जाने वाले ऐसे पदार्थ जो मिट्टी के स्वस्थ्य पर गलत प्रभाव डालते है UN की रिपोर्ट के अनुसार  24  बिलियन से भी ज्यादा उपजाऊ मिट्टी  हर साल रेत में परिवर्तित हो जा रहा है।

 मानवीय गतिविधिया मरुस्थलीकरण का मुख्य कारण है ,जैसे –

  1. वनो की कटाई।
  2. खेती में रासायनिक पदार्थो का प्रयोग ।
  3. प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक प्रयोग।
  4. अत्यधिक पशुचारण।
  5. बढ़ती जनसंख्या
  6. प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन।  

मरुस्थलीकरण के प्रभाव : –

  1. खाद्य असुरक्षा।
  2. जैव विविधता का क्षय।
  3. पीने योग्य पानी की कमी।

UNCCD के अनुसार भूमि अवकरण (land degradation) के कारण लगभग 3.2 बिलियन लोग दुनियाभर में प्रभावित हुए है जिसके कारण कृषि उत्पादकता और जैव विविधता में भारी कमी हुई है। 

भूमि अवकरण(land degradation) ने मध्य एशिया, नार्थ अमेरिका और साउथ अमेरिका के कई देशो को प्रभावित किया है। 

आकड़ो की माने तो भूमि अवकरण  2030 तक  लगभग 135 मिलियन लोगो के प्रवास का कारण बनेगा। जो कि एक विकट संकट की तरफ ईशारा कर रहा है और हमे इस समस्या को गम्भीरता से लेने की जरुरत है।

मरुस्थलीकरण को कम करने और इसके चुनौतियों का समाधान करने के लीये निम्नलिखित कदम उठाये जा सकते है :

1) वनरोपण और वृक्षारोपण: पेड़ लगाना और जंगलों को बढ़ाना जिससे मिट्टी की नमी बनी रहती है और मिट्टी के कटाव को रोका जा सकता है।

2) मिट्टी संरक्षण: खेती के लिए बेहतर तकनीकों का उपयोग करना, जैसे कि कंटूर प्लाउइंग  और टेरेस फार्मिंग जिससे मिट्टी का कटाव कम हो।

3) जल संरक्षण: जल संचयन तकनीकों का उपयोग करना जैसे कि चेक डैम, रेनवाटर हार्वेस्टिंग और ड्रिप इरिगेशन जिससे पानी की कमी को पूरा किया जा सके।

4)  गहन खेती से बचाव: भूमि का अधिक उपयोग और रसायनों का अत्यधिक उपयोग मिट्टी की गुणवत्ता को खराब करता है। जैविक खेती और फसल चक्रण  को अपनाना चाहिए।

5)  समुदाय की भागीदारी: स्थानीय समुदाय को शामिल करना और उन्हें जागरूक करना जिससे वे भूमि की देखभाल और संरक्षण में सक्रिय भागीदारी निभा सकें।

6) सरकारी नीतियां और योजनाएं: सरकार द्वारा नीतियों और कार्यक्रमों का निर्माण करना जो मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए समर्पित हों।

7) शिक्षा और जागरूकता: लोगों को शिक्षित करना और जागरूक बनाना कि मरुस्थलीकरण के क्या कारण हैं और इसे कैसे रोका जा सकता है।

मरुस्थलीकरण की चुनौतियाँ निम्नलिखित हो सकती हैं:

  1. मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट: मरुस्थलिकरण के कारण उपजाऊ मिट्टी की ऊपरी परत का कटाव होता है, जो सबसे अधिक पोषक तत्वों से भरपूर होती है। यह कटाव पानी, हवा या अन्य एजेंटों के द्वारा होता है। इसके परिणामस्वरूप, मिट्टी की उपजाऊ क्षमता कम हो जाती है और फसल उत्पादन प्रभावित होता है|
  2. जल की कमी: अत्यधिक पशुचारण और खेती के कारण मिट्टी की संरचना बदल जाती है। यह बदलाव मिट्टी की जलधारण क्षमता, पोषक तत्वों की उपलब्धता और जैविक सामग्री की मात्रा को प्रभावित करता है। मिट्टी की यह कमी फसलों के विकास के लिए हानिकारक होती है।
  • जैव विविधता की कमी: जब भूमि बंजर हो जाती है, तो वहां की स्थानीय पौधों और जानवरों की प्रजातियाँ विलुप्त होने लगती हैं। यह नुकसान पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को प्रभावित करता है और अनेक प्रजातियों के लिए खतरा पैदा करता है। जैव विविधता के नुकसान से पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ जाता है। इसका प्रभाव संपूर्ण पर्यावरण पर पड़ता है, जिससे प्राकृतिक प्रक्रियाओं में असंतुलन उत्पन्न होता है, जैसे कि पोषण चक्र और ऊर्जा प्रवाह।
  • खाद्य सुरक्षा: उपजाऊ भूमि के बंजर में बदलने से कृषि उत्पादन घट जाता है। कम उत्पादन के कारण खाद्य संकट उत्पन्न हो सकता है और देश की खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।

खाद्य उत्पादन की कमी के कारण भोजन की उपलब्धता कम हो जाती है, जिससे भुखमरी और कुपोषण की समस्याएं बढ़ जाती हैं। यह विशेष रूप से गरीब और कमजोर वर्गों को प्रभावित करता है।

  • आर्थिक प्रभाव: कृषि और पशुपालन पर निर्भर लोगों की आजीविका प्रभावित होती है उपज कम होने से किसानों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर घटने से लोग शहरों की ओर पलायन करने लगते हैं। शहरों में जनसंख्या बढ़ने से आवास, रोजगार और सेवाओं पर दबाव बढ़ जाता है।
  • पर्यावरणीय असंतुलन: मरुस्थलीकरण के वजह  से भूमि की सतह का तापमान बढ़ता है, जिससे जलवायु परिवर्तन की गति तेज हो जाती है। जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा पैटर्न बदल जाता है, जिससे सूखा और बाढ़ की घटनाएं बढ़ जाती है ।

  मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए वनरोपण, जल संरक्षण, और मिट्टी संरक्षण जैसी तकनीकों का उपयोग महत्वपूर्ण है। सामुदायिक भागीदारी, सरकारी नीतियां और शिक्षा द्वारा जागरूकता बढ़ाकर ही इस समस्या का समाधान संभव है। इन प्रयासों से हम पर्यावरणीय संतुलन और खाद्य सुरक्षा को संरक्षित कर सकते हैं। और अब जरुरत है कि हम सब मिलकर ये जिम्मेदारी ले और सही कदम उठाये । 

मनाली उपाध्याय

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