दरसअल, शोधकर्ताओं ने पानी में गर्मी फैलने के आधार पर दुनिया के पहले वैश्विक भूजल तापमान का मॉडल तैयार किया और इसके जरिए दुनिया भर में 2000-2100 के बीच होने वाले परिवर्तनों का भी अनुमान लगाया। यह बताता है कि बड़े पैमाने पर उद्योगों या जीवाश्म ईंधन से होने वाले विकास के चलते भूजल का तापमान 3.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।
सदी के अंत तक भूजल 2 से 3.5 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो सकता है। इससे जल की गुणवत्ता और सुरक्षा को खतरा हो सकता है। जल संसाधन पर विशेष पारिस्थितिकी तंत्र भी संकट में पड़ सकता है। जर्मनी के कार्लसruhe इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने अध्ययन के बाद यह खुलासा किया है।
60 करोड़ लोग होंगे प्रभावित
शोधकर्ताओं ने दावा किया कि गर्म भूजल की वजह से वैश्विक स्तर पर करीब 60 करोड़ लोग प्रभावित होंगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, दुनिया में 125 देशों में से केवल 18 देशों में भूजल का तापमान रिकार्ड किया गया है।
अध्ययन के सह-लेखक यॉर्क के न्यूसलैंड विश्वविद्यालय के गॉडविन राओ के मुताबिक, गर्म भूजल जीवाणु पैदा करने वाले सूक्ष्मजीवों के पनपने के जोखिम को बढ़ाता है। इससे पेयजल की गुणवत्ता और संभावित तौर से लोगों के जीवन पर असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि खासतौर पर यह उन क्षेत्रों के लिए चिंताजनक है जहां पानी के स्रोत पहले से ही सीमित हैं।
इस मॉडल ने मध्य रूस, उत्तरी चीन, उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों और दक्षिणी अमेरिका में बढ़ते भूजल के तापमान में सबसे अधिक बढ़ोतरी होने की भविष्यवाणी की है।
पारिस्थितिकी तंत्र पर भी खतरा
पारिस्थितिकी तंत्र पर मंडरा रहा खतरा पानी की गुणवत्ता व सुरक्षा पर भी संकट। यह स्थिति जल संसाधन पर विशेष पारिस्थितिकी तंत्र को संकट में डाल सकती है।
सूक्ष्मजीवों के पनपने का खतरा
गर्म भूजल से सूक्ष्मजीवों के पनपने का खतरा, जिससे पेयजल की गुणवत्ता और संबंधित तौर से लोगों के जीवन पर असर पड़ता है। विशेषज्ञों ने विशेषकर उन क्षेत्रों के लिए फिक्र की बात की है जहां पानी के स्रोत सीमित हैं।
इस अध्ययन के निष्कर्ष जलवायु परिवर्तन और मानव गतिविधियों के भूजल पर पड़ने वाले प्रभावों को समझने और नीतियों को सुधारने के लिए महत्वपूर्ण हैं