हाल ही में हुए एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि चीन के किंघई-तिब्बती पठार पर स्थित ग्लेशियरों के पिघलने से हर साल लगभग 947 किलोग्राम पारा पर्यावरण में जारी हो रहा है। यह खोज इस बात की ओर इशारा करती है कि ग्लेशियरों का पिघलना केवल जलस्तर में वृद्धि का कारण नहीं बन रहा, बल्कि पारे जैसे विषैले तत्वों की मात्रा को भी बढ़ा रहा है, जो पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न कर सकता है।
ग्लेशियरों के पिघलने से पारा का प्रवाह
अध्ययन में चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज के नॉर्थवेस्ट इंस्टीट्यूट ऑफ इको-एनवायरनमेंट एंड रिसोर्सेज के शोधकर्ताओं ने मिंगयोंग जलग्रहण क्षेत्र में एक साल तक रोजाना अवलोकन किया। परिणामों ने संकेत दिया कि मिंगयोंग नदी में पारा का प्रवाह 211.0 ग्राम प्रति वर्ष है। इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि इस बेसिन का पारा संचय में महत्वपूर्ण भूमिका है। इस दौरान पाया गया कि ग्लेशियरों के पिघलने से पारे की मात्रा की प्रवृत्ति विभिन्न पर्यावरणीय और जलविज्ञान प्रक्रियाओं द्वारा प्रभावित होती है।
पारिस्थितिकीय प्रभाव और स्वास्थ्य संबंधी चिंता
अध्ययन के अनुसार, किंघई-तिब्बती पठार में ग्लेशियरों के पिघलने से कुल पारे का निर्यात 947.7 किलोग्राम प्रति वर्ष होता है। यह शोध इस तथ्य की पुष्टि करता है कि ग्लेशियर पिघलने का प्रभाव जलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर पारे के चक्र में महत्वपूर्ण हो सकता है। पारा, एक अत्यधिक विषैला प्रदूषक है, जो वायुमंडल में लंबी दूरी तक फैलता है और जल और मिट्टी में मिलकर स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। यह न केवल जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी एक बड़ा खतरा पैदा करता है।
ग्लेशियरों की भूमिका और भविष्य की दिशा
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि मॉनसून के दौरान ग्लेशियरों के पिघलने से पारे की मात्रा में वृद्धि होती है, जो गैर-मॉनसून मौसम की तुलना में अधिक होती है। ग्लेशियरों की पिघलन प्रक्रिया दो मुख्य तरीकों से पारे के प्रवाह को प्रभावित करती है – ऐतिहासिक रूप से जमा पारे का निकलना और ग्लेशियर के नीचे चट्टान-पानी की परस्पर क्रिया।
यह अध्ययन इस तथ्य को उजागर करता है कि ग्लेशियरों के पिघलने का प्रभाव केवल जलस्तर तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पर्यावरणीय और स्वास्थ्य पर भी दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं। पारे के बढ़ते प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। यह शोध जर्नल ऑफ हैजर्डस मैटेरियल्स में प्रकाशित हुआ है, और वैश्विक स्तर पर पारा प्रदूषण की समस्या को समझने और संबोधित करने में सहायक साबित होगा।
किंघई-तिब्बती पठार में ग्लेशियरों के पिघलने से हर साल लगभग 947 किलोग्राम पारा निकल रहा है, जो पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर चिंता का विषय है। इस अध्ययन ने यह स्पष्ट किया है कि ग्लेशियरों का पिघलना केवल जलस्तर में वृद्धि का कारण नहीं बनता, बल्कि पारे जैसे विषैले तत्वों के प्रवाह को भी बढ़ावा देता है।
पारा, एक अत्यधिक विषैला प्रदूषक है, जो जलीय पारिस्थितिकी तंत्र और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। अध्ययन में प्राप्त आंकड़े यह दर्शाते हैं कि मॉनसून के दौरान ग्लेशियरों के पिघलने से पारे की मात्रा में वृद्धि होती है, जिससे जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिकीय असंतुलन की समस्या और भी गंभीर हो जाती है।
इस अध्ययन ने ग्लेशियरों के पिघलने के पर्यावरणीय प्रभावों को उजागर किया है और यह साबित किया है कि इस प्रक्रिया को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं को पारे के प्रदूषण के नियंत्रण के लिए तुरंत और प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है। यह शोध वैश्विक स्तर पर पारा प्रदूषण की समस्या को समझने और इसे संबोधित करने में महत्वपूर्ण योगदान देगा।
Source- down to earth