इस साल भारत में हीटवेव ने भीषण तबाही मचाई है, जिसके परिणामस्वरूप 733 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है, जबकि सरकारी आंकड़ों में केवल 360 मौतें दर्ज की गई हैं। यह विसंगति हीटवेव के खतरनाक प्रभावों और आपातकालीन स्वास्थ्य प्रबंधन में खामियों की गंभीरता को उजागर करती है।
हीटवेव की स्थिति
मार्च से जून 2024 के बीच, भारत के 37 शहरों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर दर्ज किया गया। इस दौरान हीटस्ट्रोक के 40,000 से अधिक मामले सामने आए, और कम से कम 110 मौतें हुईं। हालांकि, इन आंकड़ों में भारी अंतर है, जो सरकार और मीडिया रिपोर्टों के बीच की असमानता को दर्शाता है।
मीडिया रिपोर्ट और सरकारी आंकड़ों में अंतर
हीटवॉच और वेडिटम इंडिया फाउंडेशन द्वारा 27 जुलाई 2024 को जारी की गई रिपोर्ट “स्ट्रक बाय हीट: ए न्यूज एनेलिसिस ऑफ हीटस्ट्रोक डेथ्स इन इंडिया” के अनुसार, मार्च से जून के बीच भारत के 17 राज्यों में हीटस्ट्रोक से 733 मौतें हुईं। इनमें उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 205 मौतें, दिल्ली में 193, और ओडिशा में 110 मौतें शामिल हैं। इसके विपरीत, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों में इन राज्यों में 1 मार्च से 25 जुलाई के बीच केवल 360 मौतें दर्ज की गई हैं।
जलवायु प्रभाव और प्रशासनिक खामियां
रिपोर्ट में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के हवाले से बताया गया है कि एक डिग्री तापमान वृद्धि से गेहूं के उत्पादन में 3-4 प्रतिशत की कमी आ सकती है। केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, इस साल गर्मियों में भारत के 150 मुख्य जलाशयों में पानी का स्तर पिछले वर्ष के मुकाबले 23 से 77 प्रतिशत तक कम था। चरम गर्मी ने असंगठित क्षेत्र के कामगारों की उत्पादकता को भी प्रभावित किया है, जो सीधे गर्मी की चपेट में रहते हैं।
दिशानिर्देशों का पालन
हीटवॉच की रिपोर्ट में बताया गया है कि हालाँकि जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य पर राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीसीएचएच) और राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) द्वारा जारी दिशानिर्देश महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इनका प्रभावी क्रियान्वयन में खामियां हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय अस्पतालों में घातक हीटवेव से निपटने के लिए जरूरी सुविधाएं और बुनियादी ढांचा अभी भी अनुपलब्ध हैं। इसके अलावा, कई डॉक्टर और स्वास्थ्य सेवा पेशेवर इन दिशानिर्देशों से अनजान हैं।
हीटवेव से निपटने के उपाय
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि अत्यधिक हीटवेव के दौरान सामूहिक आयोजनों के दौरान केंद्र और राज्य सरकारों को हीट डेस्क, साइट पर कूलिंग उपकरण, और पोस्ट-कूलिंग आवश्यकताओं को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान इन उपायों की अनदेखी की गई, जिसके परिणामस्वरूप गर्मी से संबंधित बीमारियों और हीट स्ट्रोक की घटनाएं बढ़ गईं। इसमें उत्तर प्रदेश में हीटस्ट्रोक के कारण कम से कम 33 मतदान अधिकारियों की मौत शामिल है।
भविष्य की दिशा
एनसीडीसी की हालिया सलाह में राज्यों से इंटीग्रेटेड हेल्थ इन्फॉर्मेशन प्लेटफॉर्म (IHIP) को अपनाने की अपील की गई है, जो हीटवेव से होने वाली मौतों की राज्यवार जानकारी जुटाने के लिए विकसित किया गया है। हालांकि, इस पोर्टल को पारदर्शी और सुलभ बनाने की आवश्यकता है, ताकि डेटा का सही तरीके से विश्लेषण और उपयोग किया जा सके।
भारत में हीटवेव से हुई मौतों के आंकड़ों में विसंगति प्रशासनिक और आपातकालीन स्वास्थ्य प्रबंधन में सुधार की आवश्यकता को स्पष्ट करती है। प्रभावी दिशा-निर्देशों और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से निपटने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है, ताकि भविष्य में इस प्रकार की आपदाओं से बेहतर तरीके से निपटा जा सके और लोगों की जान को बचाया जा सके।
Source- down to earth