उत्तराखंड के चमोली जिले में बदरीनाथ और माणा के बीच एक भीषण एवलांच (हिमस्खलन) ने तबाही मचा दी। इस आपदा में सीमा सड़क संगठन (BRO) के 57 मजदूर बर्फ में दब गए, जिनमें से शाम तक 16 मजदूरों को सुरक्षित निकाल लिया गया। बाकी मजदूरों को बचाने का अभियान जारी है, लेकिन भारी बर्फबारी के कारण राहत कार्यों में कठिनाइयाँ आ रही हैं।
घटना 28 फरवरी की सुबह 5 बजे की बताई जा रही है, जब सीमा सड़क संगठन के मजदूर अपने टीन शेड में सो रहे थे। दूसरी रिपोर्ट्स के अनुसार, एवलांच दोपहर के समय तब आया, जब मजदूर माणा बाइपास के पास सड़क से बर्फ हटाने का कार्य कर रहे थे।
चमोली के जिलाधिकारी (DM) ने घटना की पुष्टि की, लेकिन बताया कि क्षेत्र में संचार व्यवस्था बाधित है, जिससे राहत अभियान में दिक्कतें आ रही हैं। वहीं, मौसम खराब होने और लगातार बर्फबारी के चलते हेलीकॉप्टर से पहुंचना भी संभव नहीं है।
पहले भी हो चुकी हैं ऐसी घटनाएँ
- यह पहली बार नहीं है जब इस इलाके में एवलांच ने तबाही मचाई है:
- मार्च 2021: धौलीगंगा के कैचमेंट क्षेत्र में एवलांच से 8-10 मजदूरों की मौत हो गई थी।
- फरवरी 2021: ऋषिगंगा में ग्लेशियर टूटने से तपोवन जलविद्युत परियोजना में सैकड़ों मजदूरों की जान चली गई थी।
- इस बार: विशेषज्ञों का मानना है कि बर्फबारी में बदलाव और ग्लोबल वार्मिंग के चलते एवलांच की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
मौसम का असामान्य पैटर्न बना कारण?
उत्तराखंड में इस साल सर्दी का मौसम लगभग सूखा रहा। जनवरी और फरवरी में औसत से 91% कम बारिश हुई, लेकिन 27 फरवरी से अचानक 1339% ज्यादा बारिश दर्ज की गई।
पर्यावरणविद् डॉ. एस.पी. सती के अनुसार, बर्फबारी के पैटर्न में बदलाव ही इस आपदा की मुख्य वजह है। पहले दिसंबर-जनवरी में बर्फ गिरती थी, जिससे यह ठंडी जमीन पर अच्छी तरह जम जाती थी। लेकिन अब फरवरी-मार्च में बर्फ गिर रही है, जब जमीन अपेक्षाकृत गर्म होती है। इससे बर्फ की पकड़ कमजोर हो जाती है और एवलांच का खतरा बढ़ जाता है।
ग्लोबल वार्मिंग का बढ़ता प्रभाव
- विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालय के ग्लेशियर लगातार सिकुड़ रहे हैं।
- मार्च और अप्रैल में पिघलने वाली बर्फ ग्लेशियर नहीं बना पाती, जिससे भविष्य में पानी की कमी की समस्या खड़ी हो सकती है।
- यदि यही ट्रेंड जारी रहा, तो एवलांच की घटनाओं में बढ़ोतरी होगी और जल संकट भी गहराएगा।
बचाव कार्य में चुनौतियाँ
- खराब मौसम और बर्फबारी के कारण हेलीकॉप्टर राहत कार्य में भेजना मुश्किल हो रहा है।
- संचार सेवाएँ बाधित हैं, जिससे बचाव दल को समन्वय में दिक्कत हो रही है।
- पहाड़ी इलाका और ठंड से रेस्क्यू ऑपरेशन धीमा हो गया है।
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में एवलांच की घटनाएँ ग्लोबल वार्मिंग और बदलते मौसम के संकेत दे रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह ट्रेंड जारी रहा, तो आने वाले वर्षों में और भी भयावह स्थितियाँ देखने को मिल सकती हैं। फिलहाल, प्रशासन मजदूरों को बचाने के हरसंभव प्रयास कर रहा है।