राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित रणथंभौर टाइगर रिजर्व से 25 बाघों के लापता होने की खबर ने राज्य में सनसनी फैला दी है। पिछले एक साल से इन बाघों का कोई अता-पता नहीं था, और अब राज्य वन विभाग ने इसे गंभीरता से लेते हुए उच्चस्तरीय जांच शुरू की है। इस मामले की जांच के लिए प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक पीके उपाध्याय ने तीन सदस्यीय समिति गठित की है, जो अगले दो महीने में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
टाइगर मॉनिटरिंग कमेटी की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा
पिछले महीने की टाइगर मॉनिटरिंग रिपोर्ट में बाघों के लापता होने की जानकारी मिली थी, जिसके बाद राज्य सरकार ने उच्च स्तरीय बैठक की और विभागीय अधिकारियों से जवाब मांगा। वन विभाग ने अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक राजेश कुमार गुप्ता के नेतृत्व में एक जांच समिति गठित की है, जिसमें वन संरक्षक टी मोहनराज और उप वन संरक्षक मानस सिंह को भी शामिल किया गया है।
जांच कमेटी का दायरा और कार्य
जांच कमेटी का मुख्य उद्देश्य रणथंभौर से गायब हुए बाघों के मामलों को खंगालना और कारणों का पता लगाना है। इसमें स्थानीय विशेषज्ञों की सलाह लेकर यह भी समझने की कोशिश की जाएगी कि क्या बाघों के गायब होने में कोई संगठित अवैध शिकार नेटवर्क शामिल है या यह सिर्फ मॉनिटरिंग में चूक का मामला है।
लापता बाघों की स्थिति
वन विभाग के अनुसार, अक्टूबर 2024 की एक रिपोर्ट से पता चला कि 11 बाघों का एक साल से अधिक समय से पता नहीं है, जबकि अन्य 14 बाघों के बारे में भी कोई जानकारी नहीं है। लेकिन इस बीच रणथंभौर के वन अधिकारी अनूप के.आर. ने दावा किया कि इनमें से 11 बाघ वापस आ गए हैं, जिससे केवल 14 बाघ ही लापता हैं। हालांकि, वह बाघों के वापस लौटने का कोई आधिकारिक प्रमाण नहीं दे पाए।
बाघ टी-86 की निर्मम हत्या
रणथंभौर में हाल ही में एक और दुखद घटना सामने आई, जिसमें बाघ टी-86 की हत्या की गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, टी-86 के शरीर पर दरांती, कुल्हाड़ी और पत्थरों से हमले के 20 से अधिक निशान मिले हैं। माना जा रहा है कि उलियाना गांव में एक ग्रामीण पर इस बाघ के हमले के बाद गुस्साए ग्रामीणों ने बदले की भावना से इस पर हमला किया, जिससे उसकी मौत हो गई। इस घटना ने मानव-पशु संघर्ष के बढ़ते मामलों पर ध्यान केंद्रित किया है, जो संरक्षण की दिशा में एक नई चुनौती है।
बाघ संरक्षण में सामने आ रही चुनौतियाँ
राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने बाघों के लापता होने को गंभीरता से लेते हुए सीबीआई जांच की मांग की है। उन्होंने कहा कि यह घटना न सिर्फ बाघ संरक्षण अभियान की कमजोरियों को उजागर करती है, बल्कि इससे बाघों की सुरक्षा को लेकर प्रशासनिक लापरवाही भी सामने आई है।
रणथंभौर में बाघ संरक्षण पर सवाल
रणथंभौर टाइगर रिजर्व, जहां बड़ी संख्या में पर्यटक बाघों की एक झलक पाने के लिए आते हैं, बाघ संरक्षण के लिए देशभर में विख्यात है। यहां बाघों का लापता होना वन्यजीव संरक्षण और प्रबंधन में बड़ी लापरवाही को दर्शाता है। इस घटना ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या हम बाघों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम उठा रहे हैं, और क्या मौजूदा संरचनाएं इनके संरक्षण के लिए पर्याप्त हैं?
बाघों के संरक्षण के लिए सरकार और वन विभाग को त्वरित कदम उठाने की जरूरत है। वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि बाघों के गायब होने की घटना एक गंभीर चेतावनी है, और इसके लिए उच्च-स्तरीय निगरानी के साथ-साथ तकनीकी सहायता की आवश्यकता है। साथ ही, स्थानीय समुदायों को भी वन्यजीव संरक्षण में भागीदार बनाना महत्वपूर्ण है ताकि मानव-पशु संघर्ष की घटनाओं को कम किया जा सके।
रणथंभौर से बाघों के लापता होने की यह घटना हमारे वन्यजीव संरक्षण प्रयासों को मजबूत करने और प्रशासनिक पारदर्शिता बढ़ाने की आवश्यकता को उजागर करती है।
रणथंभौर टाइगर रिजर्व से 25 बाघों के लापता होने की घटना न केवल वन्यजीव संरक्षण में गंभीर चूक को उजागर करती है, बल्कि यह हमारे वन्यजीव प्रबंधन और निगरानी प्रणाली की खामियों की ओर भी संकेत करती है। वन विभाग की ओर से जांच कमेटी का गठन एक सकारात्मक कदम है, लेकिन बाघों की सुरक्षा और संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए ठोस और दीर्घकालिक रणनीति की आवश्यकता है।
इस घटना से यह भी स्पष्ट है कि वन्यजीव संरक्षण सिर्फ विभागीय जिम्मेदारी नहीं, बल्कि स्थानीय समुदायों और सरकार के संयुक्त प्रयास से ही संभव है। मानव-पशु संघर्ष को कम करने और बाघों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि हम आधुनिक तकनीक और कड़े नियमों का सहारा लें, साथ ही स्थानीय स्तर पर जागरूकता फैलाने और समुदायों को संरक्षण में शामिल करने पर भी जोर दें।
रणथंभौर टाइगर रिजर्व जैसी प्रतिष्ठित जगह पर बाघों का गायब होना हमारी नीतियों और सुरक्षा उपायों पर पुनर्विचार करने का अवसर देता है। यदि हम इनसे सबक लेकर त्वरित और प्रभावी कदम उठाते हैं, तो यह घटना भारतीय वन्यजीव संरक्षण प्रयासों को एक नई दिशा दे सकती है।