देश की राजधानी समेत प्रमुख शहरों में वायु प्रदूषण (Air Pollution) एक गंभीर समस्या बन गई है। लैंसेट प्लेनेटरी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन ने चिंताजनक तस्वीर पेश की है। इसके अनुसार, पीएम 2.5 कणों की अधिकता के कारण दिल्ली समेत देश के 10 शहरों में हर साल करीब 33 हजार लोगों की मौत हो रही है। इनमें से अकेले दिल्ली में 12 हजार लोगों की जान जा रही है, जो कुल वार्षिक मौतों का 11.5 फीसदी है।
राजधानी में 100 में से 12 लोगों की मौत खराब हवा के कारण होती है। वाराणसी में भी स्थिति चिंताजनक है, जहां वायु प्रदूषण से होने वाली मौतें 10 फीसदी से अधिक हैं।
भारत के स्वच्छ वायु मानक, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानक 15 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से चार गुना ज़्यादा हैं। यही कारण है कि दिल्ली समेत अन्य शहरों में वायु प्रदूषण को कम करना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।

डॉ. भार्गव कृष्ण, अध्ययन के मुख्य लेखक और सर्टेनटेनेट फ़्यूचर्स कोलैबोरेटिव के फ़ेलो, ने कहा, “वायु प्रदूषण के लिहाज से बेहतर माने जाने वाले शहरों में भी लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। यह एक राष्ट्रव्यापी समस्या है और इसे हल करने के लिए पूरे साल एक मज़बूत अभियान की ज़रूरत है।”
कुछ महीने पहले एक रिपोर्ट में दिल्ली को दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बताया गया था। कोर्ट से लेकर संसद तक चिंता जाहिर करने के बाद भी हालात में सुधार नहीं हो रहा है। माना जाता है कि मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता और चेन्नई जैसे शहरों की हवा अपेक्षाकृत साफ है, लेकिन इन शहरों में भी प्रदूषण से मौतों की संख्या ज्यादा है। इसकी वजह हवा में पीएम 2.5 है।
पीएम 2.5 कणों में 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की बढ़ोतरी से प्रतिदिन मौतों की संख्या में 1.4 फीसदी का इजाफा होता है। स्थानीय वायु प्रदूषण स्रोतों के प्रभाव को अलग करने वाली तकनीकों का उपयोग करने पर यह लगभग दोगुना होकर 3.57 प्रतिशत हो गया। PM 2.5 के मुख्य स्रोत वाहनों के ईंधन जलने से निकलने वाला धुआँ और औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला धुआँ हैं। अध्ययन में कहा गया है कि भारत को अपने स्वच्छ वायु मानकों को कम करके कम से कम WHO के दिशा-निर्देशों को पूरा करना चाहिए ताकि नागरिकों को प्रदूषित हवा के खतरों से बचाया जा सके। मृत्यु दर के आंकड़ों का अध्ययन 2008 से 2019 के बीच किया गया।
संबंधित आंकड़े:
- दिल्ली: 12,000 मौतें प्रति वर्ष
- वाराणसी: 830 मौतें प्रति वर्ष
- कोलकाता: 4,700 मौतें प्रति वर्ष
- मुंबई: 2,100 मौतें प्रति वर्ष
- पुणे: 1,400 मौतें प्रति वर्ष
वायु प्रदूषण एक राष्ट्रीय आपदा बन चुका है और इसे कम करने के लिए ठोस और त्वरित कदम उठाने की आवश्यकता है। नागरिकों की जान बचाने के लिए भारत को अपने स्वच्छ वायु मानकों को सुधारना होगा और WHO के दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा।
Source – दैनिक जागरण
