जबलपुर के बोरलॉग इंस्टीट्यूट ऑफ साउथईस्ट एशिया (बीआईएसए) के वैज्ञानिकों ने प्रशासन के साथ मिलकर किसानों को फसल काटने के बाद पराली न जलाने के लिए सफल प्रयोग किया है। उन्होंने मध्य प्रदेश के जबलपुर, कटनी और छिंदवाड़ा जिलों के 500 से अधिक किसानों को इसमें जोड़ा। इन किसानों ने पराली जलाए बिना और जुताई किए बिना अपने 800 एकड़ कृषि भूमि में मूंग की खेती की। इस प्रयोग ने दिखाया कि पराली जलाने के बिना भी फसलें सफलतापूर्वक उगा सकती हैं, मिट्टी की स्वास्थ्य को बनाए रखते हैं और खेती की लागत को कम करते हैं। इस पहल की सफलता ने पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण का समाधान प्रदान किया है और मिट्टी में जैविक कार्बन को बनाए रखने के फायदे दिखाए हैं।
जागरण स्पेशल
अतुल शुक्ला, नईदुनिया
जबलपुर: अब कृषि वैज्ञानिक और प्रशासन ने मिलकर किसानों को फसल कटाई के बाद पराली जलाने से रोकने के प्रयास में जुट गए हैं। इसमें, बोरलॉग इंस्टीट्यूट ऑफ साउथईस्ट एशिया (बीआईएसए) जबलपुर केंद्र के वैज्ञानिकों ने सफल प्रयोग किया है। वैज्ञानिकों ने मध्य प्रदेश के तीन जिलों जबलपुर, कटनी और छिंदवाड़ा के 500 से अधिक किसानों को जागरूक किया और उन्हें इस अभियान से जोड़ा।
किसानों ने बिना पराली जलाए और बिना जुताई किए अपने 800 एकड़ कृषि भूमि में मूंग की खेती की। मूंग के बीजों को “हैप्पी सीडर” नामक कृषि मशीन की सहायता से खेतों में सूखी पराली के बीच बोया गया।
वैज्ञानिकों ने बीज बोने के बाद खेतों की निरंतर निगरानी की। इस दौरान फसल को दिए जाने वाले पोषक तत्वों में कोई बदलाव नहीं किया गया। इसका परिणाम अच्छा निकला और मूंग की अच्छी फसल हुई।
बीआईएसए के वैज्ञानिक डॉ. रवि गोपाल सिंह ने बताया कि इस प्रयोग से खेतों में पराली जलाए बिना सफल खेती की जा सकती है। यह प्रयोग कटनी के नजदीक बोरीबंद के किसान सत्येंद्र कुमार के खेत में किया गया था। उन्होंने कहा कि शुरू में उन्हें अजीब लगा और मन में सवाल उठता रहा कि बिना पराली जलाए अन्य फसलें कैसे उगेंगी, लेकिन बीआईएसए के वैज्ञानिक डॉ. महेश ने उनके खेत में बिना पराली जलाए मूंग बोया। आज फसल लहलहा रही है। उसी गांव के किसान छलकन सिंह ने कहा कि पराली जलाए बिना मूंग की अच्छी पैदावार हो सकती है।
पराली जलाने और न जलाने के फायदे और नुकसान समझाए गए। इसके बाद, गेहूं की कटाई के कुछ ही घंटों बाद बिना पराली जलाए मूंग की बुवाई की गई। मूंग की फसल कटाई के लिए तैयार होने में लगभग 72 दिन लगते हैं और अब कटाई में एक सप्ताह से भी कम समय बचा है।
बीआईएसए के वैज्ञानिक डॉ. महेश मास्के ने कहा कि पराली में जैविक कार्बन होता है, जो मनुष्यों में हीमोग्लोबिन की तरह काम करता है। यह जैविक कार्बन मिट्टी की शक्ति को बढ़ाता है और उसे स्वस्थ रखता है, लेकिन इसे जलाने से यह नष्ट हो जाता है।
बीआईएसए के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रवि गोपाल सिंह ने कहा कि इस प्रयोग से न केवल मिट्टी की हानि कम हुई है, बल्कि खेती की लागत भी कम हुई है। किसानों ने इस प्रयोग से पुस्तकों की तुलना में अधिक सीखा, इसलिए हमने उनके खेतों में यह प्रयोग किया, जो सफल रहा।
मध्य प्रदेश में कटाई के बाद पराली जलाने के मामले में देश में दूसरा स्थान है। राज्य में पराली जलाने के मामले इतने बढ़ गए हैं कि यह पंजाब को भी पीछे छोड़ देगा। पर्यावरण और भूमि संरक्षण के उद्देश्य से बीआईएसए ने किसानों के खेतों में जाकर उन्हें लाइव डेमो दिया।