केदारनाथ के रास्ते पर हैलीपैड की संख्या बढ़ती जा रही है। इतना शोर है कि आवाज़ देने पर आवाज़ गुम हो जाएगी। न गूंजेगी, न वापिस ही आएगी।
खनन के लिए जगह-जगह जेसीबी काम पर लगे हैं। निर्मित हो रहीं इतनी टनल, इतने पुल, इतने चौड़े रास्ते, इतनी ऊंचाई पर इतनी मशीनों को देखकर कभी-कभी दिल बैठ सा जाता है।
कई स्थानीय नदियों में पानी उतना ही बचा है जितना शहर की आँख में आँसू। कभी उन नदियों में आकार पाए गोल पत्थर आधे सूखे, आधे गीले और कहीं-कहीं अकेले पड़े हैं। उन तक पहुंचने के रास्ते जीप और एसयूवी और अन्य गाड़ियों ने तलाश लिए हैं।
लोग बड़े पत्थरों पर बैठकर पत्थरों के नीचे बहने वाली जलधारा को अंजुली में भरकर ख़ुश हैं। मैगी पॉइंट्स पर गाड़ी मुहाने पर खड़ी करने की होड़ भी बढ़ रही है। रील देखकर कार पार्क करना लोगों के लिए नया एंडवेंचर है। यही उनका मनोरंजन भी।
यहाँ ठंडक अब पहले की तरह नहीं रही। अब गाड़ी का शीशा खोलने पर हवा गर्म आती है। तापमान साल दर साल बढ़ रहा है। दिल्ली से बैग में आई जैकेट बैग में ही है और शायद बैग में वापिस चली जाएगी। लोग दिल्ली की ही तरह हाफ़ टी-शर्ट और शर्ट में घूम रहे हैं।
सच कहूँ, उत्तराखंड के पहाड़ अब वैसे नहीं रहे जैसे मेरी स्मृतियों में रहते आए हैं।
- अंजुम शर्मा
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