उत्तराखंड वन अनुसंधान संस्थान ने पिथौरागढ़ के मुनस्यारी में तीन साल की मेहनत से एक नया रिकॉर्ड स्थापित किया है। यहां जापानी मियावाकी पद्धति का उपयोग करके 2450 मीटर की ऊँचाई पर 2000 वर्ग मीटर का एक जंगल विकसित किया गया है। इस तकनीक ने इटली के सर्रिदानिया में स्थित 1836 मीटर की ऊँचाई के जंगल के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया है, जिससे यह दुनिया का सबसे ऊँचा मियावाकी जंगल बन गया है।
मियावाकी पद्धति की विशेषताएँ
जापानी वनस्पतिशास्त्री डॉ. अकीरा मियावाकी द्वारा विकसित की गई इस पद्धति का उद्देश्य स्थानीय प्रजातियों को बढ़ावा देना और जैविक खाद का उपयोग करना है, जिससे मिट्टी की उर्वरता में कमी न आए। मियावाकी पद्धति में पौधों को बहुत घनत्व के साथ लगाया जाता है, जिससे खरपतवारों को पनपने का अवसर नहीं मिलता। इससे जंगल की वृद्धि दर तेजी से बढ़ती है।
इस परियोजना के तहत, जुलाई 2021 में मुनस्यारी में 40 से अधिक प्रजातियों के 5239 पौधे लगाए गए थे। अब, तीन साल बाद, इनमें से 4919 पौधे जीवित हैं, जो इस तकनीक की सफलता को दर्शाता है। इस जंगल में बुरांश, देवदार, जंगली अखरोट, पहाड़ी पीपल, और कई अन्य स्थानीय प्रजातियाँ शामिल हैं।
स्थानीय समुदाय का सहयोग
इस परियोजना को सफल बनाने में स्थानीय समुदाय की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्होंने न केवल पौधों की देखभाल की, बल्कि इस प्रक्रिया में अपनी पारंपरिक ज्ञान का भी उपयोग किया। इस प्रकार, यह जंगल न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी के लिए भी लाभकारी साबित होगा।
जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक कदम
इस जंगल की स्थापना जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने की क्षमता बढ़ेगी, और यह क्षेत्रीय पारिस्थितिकी तंत्र को स्थिर करने में मदद करेगा। इसके अलावा, यह जैव विविधता को बढ़ाने में भी सहायक होगा, जिससे वन्यजीवों और पौधों की विभिन्न प्रजातियाँ यहाँ पनप सकेंगी।
भविष्य की योजनाएँ
उत्तराखंड वन अनुसंधान संस्थान ने भविष्य में इसी तरह की और परियोजनाओं की योजना बनाई है। वे अन्य ऊँचाई पर भी इसी प्रकार के जंगल विकसित करने की सोच रहे हैं। यह प्रयास न केवल पर्यावरण की सुरक्षा करेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक स्थायी हरा स्थान सुनिश्चित करेगा।
इस प्रकार, मुनस्यारी में मियावाकी पद्धति से विकसित किया गया यह जंगल न केवल तकनीकी दृष्टि से एक उपलब्धि है, बल्कि यह प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक प्रभावी समाधान भी है। यह परियोजना न केवल उत्तराखंड के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करती है कि कैसे पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का संयोजन प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में मदद कर सकता है।
इस प्रकार की पहलों से हमें यह सीखने को मिलता है कि यदि हम अपने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए मिलकर काम करें, तो हम प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में सक्षम हो सकते हैं। उत्तराखंड का यह नया जंगल सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा।